Mughal Vs Maratha: साल 1526 में पानीपत (Panipat War) की पहली लड़ाई लड़ी गई थी. यह जंग दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी (Ibrahim Lodhi) और बाबर (Babar के बीच हुई थी. इस युद्ध को जीतकर बाबर ने मुगल साम्राज्य (Mughal Emperor) की नींव रखी थी. मुगलों का शासन 1526-1857 तक चला. इस बीच मुगलों ने धीरे-धीरे कई राज्यों के अपने अधीन कर लिया. इस दौरान कई युद्ध लड़े गए. बाबर के बाद मुगल शासकों ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए कई राज्यों पर हमले किए और उन्हें हासिल कर लिया. लेकिन दक्षिण (दक्कन) में मुगलों को कभी भी जीत हासिल नहीं हो सकी. मुगलों का वह सपना केवल सपना ही रह गया.
इतिहास का सबसे लंबा युद्ध
औरंगजेब (Auranzeb)अपनी जिंदगी के आखिरी 27 साल मराठों संग केवल युद्ध लड़ता रह गया. लेकिन जीत का स्वाद उसे कभी नहीं मिला. इसे ही मुगलों का सबसे लंबा युद्ध माना जाता है. इस दौरान औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों पर कब्जा किया. लेकिन पूरी तरह से कभी जीत हासिल नहीं कर पाया. शाहजहां का पुत्र आलमगीर यानी औरंगजेब छठा मुगल शासक था. उसने भारत पर 1658-1707 तक शासन किया. उसने उत्तराधिकारी बनने की चाह में कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. वह आखिरी मुगल शासक था, जिसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया.
शिवाजी महाराज ने दी औरंगजेब को कड़ी टक्कर
दक्षिण में मराठा साम्राज्य की स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी. उन्होंने बीजापुर के सुल्तान से युद्ध लड़कर अपने साम्राज्य की स्थापना की थी. इसके बाद उन्होंने कई बार मुगलों से लड़ाइयां लड़ी. साल 1674 में उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की थी. दिल्ली की कमान हाथ में लेने से पहले औरंगजेब साल 1663 में दक्षिण गया था. शहाजहां ने गद्दी को लेकर चल रहे विवाद से बचने के लिए यह निर्णय लिया था. औरंगजेब ने निजाम शाही को खत्म कर औरंगाबाद में अपना ठिकाना बनाया. फिर 1652 में उसे दक्षिण की जिम्मेदारी सौंपी गई. इस दौरान मराठों के औरंगजेब के बीच छोटे-छोटे युद्ध होते रहे. साल 1657 में शिवाजी ने मुगलों के जुनार पर हमला कर उसे लूट लिया. जिससे औरंगजेब गुस्से से आगबबूला हो गया. लेकिन इस बीच गद्दी के लालच में वह दिल्ली वापस लौट गया.
मुगलों ने किया छल-कपट
साल 1666 में राजा जयसिंह के कहने पर युद्ध में शिवाजी को पुरंदर की संधि की. जिसके कारण कई किले मुगलों को देने पड़े. इस दौरान शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने आगरा बुलाया. लेकिन वहां उन्हें सम्मान नहीं दिया गया. बेटे संभाजी के साथ शिवाजी को नजरबंद कर दिया गया. हालांकि शिवाजी अपने बेटे के साथ फलों की टोकरी में छिपाकर भगा दिया. जिसके बाद औरंगजेब का गुस्सा बढ़ता चला गया. साल 1680 में दिल्ली छोड़ औरंगजेब दक्कन चला गया. इसके बाद धीरे-धीरे उसने हमला कर अपना अधिपत्य करना शुरू किया. मुगलों के सामने केवल मराठा बचे. इस दौरान शिवाजी ने औरंगजेब को दिए राज्या वापस पा लिए. यह सिलसिला शिवाजी की मौत तक चलता रहा, लेकिन युद्ध नहीं रुका.
संभाजी महाराज को दी गई फांसी
संभाजी महाराज साल 1681 में मराठा सिंहासन पर बैठे. उन्होंने भी अपने पिता की तरह मुगलों का सामना किया. वह मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ते रहे और मराठों को एकजुट करते रहे. गणोजी के छल के कारण संभाजी को मुगलों ने संगमेश्वर में पकड़ लिया. उन्हें काफी यातनाएं दी गई, लेकिन संभाजी महाराज नहीं झुके. 11 मार्च 1689 को पुणे के पास तुलापुर में औरंगजेब ने उनको फांसी दे दी. लेकिन इसके बाद भी उसे मराठा साम्राज्य नहीं हासिल हो सका.
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