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चंपावत की वो आदमखोर! जिंदा खा गई 436 इंसान, आर्मी नहीं… इस एक ‘बहादुर’ ने किया था इसका अंत

Maneater of Champawat: जिम कॉर्बेट ने उत्तराखंड के लोगों को आदमखोर जानवरों से बचाया. उन्होंने चंपावत की एक ऐसी बाघिन को मारकर कॉर्बेट ने लोगों को राहत पहुंचाई जिसने 436 लोगों को दर्दनाक मौत दी थी.

By: Heena Khan | Published: October 8, 2025 12:46:10 PM IST



Jim Corbett Story: एक शख्स की बहादुरी ने उत्तराखंड को ऐसे खतरनाक आदमखोर से बचाया है जिसने पूरे देश में तबाही मचा रखी थी. जी हां हम किसी और की नहीं बल्कि बात कर रहे हैं जिम कॉर्बेट की. ये वो शख्स हैं जिनकी बहादुरी की मिसाल दी जाती है. जो काम भारतीय सेना नहीं कर सकी वो इन्होने कर दिखाया था. कॉर्बेट कोई आम शिकारी नहीं थे। वो एक सच्चे प्रकृति प्रेमी, वन रक्षक और एक संवेदनशील इंसान थे, जिनके लिए हर जीव की अपनी कहानी थी। चलिए जान लेते हैं कि आखिर इन्होने ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से आज उनका नाम पूरी दुनिया में जाना जाता है? 

बहादुरी की मिसाल ‘जिम कॉर्बेट’

तो आपको बता दें कि बीसवीं सदी की शुरुआत में, उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र आदमखोर बाघों और तेंदुओं के आतंक से त्रस्त थे। चंपावत की बाघिन, रुद्रप्रयाग का तेंदुआ और पनार के तेंदुए जैसे खूंखार जानवरों ने सैकड़ों लोगों को मिनटों में मौत की नींद सुला दिया। इस बाघिन ने पूरे गांव में दहशत फैल दी थी और लोग अपने घरों से निकलने से कतराने लगे थे। ऐसे में जिम कॉर्बेट ने अपनी जान जोखिम में डालकर आदमखोरों का शिकार करके लोगों को नई जिंदगी दी है. 

बाघिन कैसे बनी नरभक्षी 

कॉर्बेट की हर शिकार यात्रा एक दिल दहला देने वाली कहानी है, लेकिन “मैन-ईटर्स ऑफ़ कुमाऊं” और “द टेंपल टाइगर” जैसी उनकी किताबों को पढ़ने से पता चलता है कि वो शिकार को सिर्फ़ मनोरंजन नहीं मानते थे। बल्कि वो हर नरभक्षी की कहानी समझने की कोशिश करते थे। कॉर्बेट जानते थे कि ये जानवर स्वाभाविक रूप से क्रूर नहीं होते। अक्सर उनके साथ कुछ ऐसा हुआ होता है जिससे वो खूंखार नरभक्षी बन जाते हैं. उदाहरण के तौर पर, चंपावत की बाघिन, जिसने 436 लोगों को बेमौत मार डाला था, इस बाघिन के इस बर्ताव के बाद कॉर्बेट को इस बात को जानने का भूत सवार हो गया किइस जानवर को नरभक्षी बनने के लिए किसने मजबूर किया? वहीं जबी कॉर्बेट ने उसकी जांच की तो पता चला कि उसके दांत टूट गए थे, जिससे वो जंगल में शिकार नहीं कर सकती थी। यही संवेदनशीलता उन्हें एक शिकारी से ज़्यादा एक वन्यजीव संरक्षणवादी बनाती थी।

436 लोगों को दी दर्दनाक मौत

1900 के दशक की शुरुआत में, उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र और उससे सटे नेपाल के कुछ हिस्सों में एक बाघिन ने इतना आतंक मचाया था कि लोग उसका नाम सुनते ही सिहर उठते थे। यह बाघिन चंपावत बाघिन थी, जिसने 436 लोगों को मार डाला थाएक ऐसा रिकॉर्ड जो उसे इतिहास की सबसे खतरनाक आदमखोर बाघिन बनाता है। नेपाल से शुरू हुआ यह आतंक भारत के चंपावत और आसपास के इलाकों तब फैल गया जब नेपाली सेना ने इस बाघिन को खदेड़ दिया।

कॉर्बेट के लिए सबसे मुश्किल काम 

1911 में, कॉर्बेट ने चंपावत की बाघिन को मारने का बीड़ा उठाया। यह कोई साधारण शिकार नहीं था। बाघिन न केवल खतरनाक थी, बल्कि असाधारण रूप से चालाक भी थी। वो मानवीय गतिविधियों को भांप लेती थी और शिकारियों के जाल में आसानी से नहीं फंसती थी। कॉर्बेट ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि बाघिन का पीछा करना उनके द्वारा अब तक किया गया सबसे कठिन काम था। उसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह कभी भी एक ही जगह पर दोबारा नहीं जाती थी और शायद ही कभी किसी शिकार को एक बार से ज़्यादा बार देखने जाती थी।

जिम कॉर्बेट ने कैसे किया बाघिन का अंत 

जिम कॉर्बेट ने चंपावत की आदमखोर बाघिन का अंत बड़ी मेहनत और साहस से किया। कई दिनों तक बाघिन का पीछा करने के बाद, उन्होंने पता लगाया कि बाघिन एक गांव में हमला करके नदी के किनारे चली गई है। कॉर्बेट ने स्थानीय लोगों की मदद से बाघिन का पीछा शुरू किया। एक बार उन्हें बाघिन के शिकार की एक लड़की का पैर मिला, जिससे बाघिन पहली बार परेशान हुईकई घंटों तक बाघिन का पीछा करने के बाद, रात होने पर कॉर्बेट वापस लौटे और लड़की के पैर को सुरक्षित दफनायाअगले दिन, 300 लोगों की हांका पार्टी लेकर वो बाघिन की खोज में निकलेलेकिन पार्टी की गलती से पहले शोर-शराबा और फायरिंग हो गई, जिससे बाघिन छुपे हुए स्थान से बाहरगई

कॉर्बेट के पास केवल तीन गोलियां थीं। उन्होंने दो गोलियां बाघिन को मारी, जो उसे घायल कर दिया लेकिन वो हमला नहीं कर पाई। तीसरी गोली जब उन्होंने चलाई, तो निशाना चूक गया और गोली बाघिन के पंजे में लगी, इस चोट के कारण बाघिन अपनी आखिरी सांसें गिनने लगी और गिर पड़ी। इसी तरह जिम कॉर्बेट ने अपनी सूझ-बूझ, बहादुरी और निशानेबाजी से चंपावत की आदमखोर बाघिन का अंत किया।

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