Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव का एलान हो गया है. सभी पार्टियों ने अपनी-अपनी तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में आज हम देश की राजनीति के पुराने खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद की बात करेंगे और उनके उन समीकरण की बात करेंगे, जिससे आज भी भाजपा और जदयू को डर लगता हैं. जी हां, आज हम उस MY समीकरण की बात करेंगे जिसकी वजह से राजद को वर्षों से सफलता मिलती आई है. लेकिन पिछले कुछ चुनाव से राजद का ये समीकरण काम करता हुआ नजर नहीं आ रहा है. अब लालू के इस समीकरण को उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव बढ़ाने का काम कर रहे हैं. लेकिन सवाल उठ रहा है कि राजद का यह समीकरण बिहार विधानसभा 2025 में काम करेगा.
लालू ने कब की थी इस समीकरण की शुरूआत?
लालू यादव ने तीन दशक पहले भारतीय राजनीति में आए दो बड़े राजनीतिक तूफानों ‘मंडल और मंदिर’ (MM) का सफलतापूर्वक इस्तेमाल करके इस शक्तिशाली सामाजिक समीकरण को गढ़ा, जिसने बिहार की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया. लालू यादव का ‘MY’ फॉर्मूला दो ‘MM’ मंडल और मंदिर, से निकला था. 1990 की दो घटनाओं ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी. वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी पुस्तक “द ब्रदर्स बिहारी” में लिखते हैं कि इस कदम ने लालू यादव को दलितों और अल्पसंख्यकों के एक बहादुर रक्षक के रूप में बदल दिया.
MY फॉर्मूले की पहली बड़ी सफलता
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना ईंधन का काम किया. तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. बिहार के मतदाताओं में पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 52 प्रतिशत थी. इस फैसले का तथाकथित उच्च जाति ने विरोध किया. लालू यादव जिन्होंने खुद को जातिगत वर्चस्व के खिलाफ लड़ने वाले के रूप में पेश किया. पिछड़ी जातियों के मसीहा बनकर उभरे और मुख्यमंत्री बने.
लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा की चर्चा थी. भाजपा के नेतृत्व वाली इस यात्रा ने तत्कालीन वी.पी. सिंह सरकार के लिए एक चुनौती पेश की. लालू यादव ने इन दोनों राजनीतिक तूफान का कुशलता से फायदा उठाया. तत्कालीन वी.पी. सिंह सरकार के कहने पर लालू यादव ने 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. इस कदम ने लालू यादव को रातोंरात देश भर के मुसलमानों और वामपंथी उदार बुद्धिजीवियों के बीच राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया.
RJD की राजनीतिक आधार MY
बिहार विधानसभा चुनावों में लालू यादव ‘MY’ फॉर्मूले में सेंध लगाते दिख रहे हैं. जहां AIMIM एक चुनौती पेश कर रही है. वहीं NDA की बढ़त चिंता का विषय बनी हुई है. 2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील सीमांचल क्षेत्र में 5 सीटें जीतकर राजद के मुस्लिम वोट बैंक को खुली चुनौती दी थी. हालांकि इनमें से चार विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए. पिछले कुछ वर्षों में NDA ने अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के वोट का एक बड़ा हिस्सा हासिल किया है. ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA एक बड़ी ताकत बन गया है.