Home > व्यापार > क्या ‘लाडकी बहन’ स्कीम हो जाएगी बंद ? जानिए क्या कम पैसे में मिलने वाला भोजन होने वाला है बंद

क्या ‘लाडकी बहन’ स्कीम हो जाएगी बंद ? जानिए क्या कम पैसे में मिलने वाला भोजन होने वाला है बंद

Ladki Bahini Scheme: महाराष्ट्र की ‘माझी लड़की बहिन’ योजना पर ज्यादा खर्च होने से अन्य योजनाओं जैसे ‘आनंदाचा शिधा’ और ‘शिव भोजन थाली’ पर फंड की कमी हो रही है .इन योजनाओं के भविष्य को लेकर मंत्री छगन भुजबल ने चिंता जताई है.

By: Anshika thakur | Last Updated: October 7, 2025 3:23:48 PM IST



महाराष्ट्र में लाखों महिलाएं ‘माझी लड़की बहिन’ योजना के तहत महाराष्ट्र की बहुत सारी महिलाएं इस महीने अपनी 15वीं किस्त मिलने की राह देख रही हैं, दूसरी ओर मंत्री छगन भुजबल ने इस योजना को लेकर महत्वपूर्ण बात कही है. उनका कहना था कि ‘लाडकी बहिन’ योजना की वजह से बाकी योजनाओं के लिए पैसा कम मिल रहा है. 

भुजबल ने बताया कि ‘लाडकी बहिन’ योजना पर सरकार हर साल 40 से 45 हज़ार करोड़ रुपये खर्च कर रही है. इतनी बड़ी रकम एक ही योजना खर्च होने की वजह से दूसरी योजनाओं के लिए पैसा कम पड़ रहा है. 

हर महीने 1500 रुपये मिलते हैं महिलाओं को

यह योजना पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुई थी. ताकि प्रदेश की महिलाएं मजबूत बन सकें. योजना के मुताबिक महिलाओं को महीने के 1,500 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है. मंत्री भुजबल की बातों से लगता है कि लाडकी बहन योजना भविष्य में बंद हो सकती है. 

भुजबल ने ‘आनंदाचा शिधा’ योजना के बारे में चिंता व्यक्त की. दिवाली के 2022 में  यह योजना शुरू की गई थी, इसके तहत केसरिया राशन कार्डधारकों को 100 रुपये  में चार जरूरी खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाए जाते हैं. भुजबळ ने बताया कि ‘लाडकी बहिन’ योजना पर ज्यादा पैसे खर्च होने के कारण इस बार ‘आनंदाचा शिधा’ योजना लागू करना आसान नहीं होगा.  

भुजबल ने ‘शिव भोजन थाली’ के बारे में भी चिंता दिखाई

भुजबल ने कहा कि ‘शिव भोजन थाली’ योजना भी भी मुश्किल में है. इस योजना में लगभग दो लाख जरुरतमंदों को 10 रुपये में खाना उपलब्ध कराया जाता है. योजना के लिए सालाना 140 करोड़ रुपये पये चाहिए, मगर इस समय सिर्फ 70 करोड़ रुपये ही उपलब्ध हैं.

क्या है ‘शिव भोजन थाली’? 

इस थाली में दो चपातियां, एक सब्जी, दाल और थोड़ा चावल शामिल होते हैं. शहर में एक थाली की कीमत 50 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 35 रुपये है, जिसका अंतर सरकार सब्सिडी के तौर पर चुकाती है.

Advertisement