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अलाउद्दीन खिलजी के हरम में पार होती थी हैवानियत की हद, महिलाओं से ज्यादा बच्चों पर थी ‘गंदी’ नज़र!

अलाउद्दीन खिलजी का हरम बाकी बादशाहों से बिलकुल अलग था. इतिहासकारों के अनुसार खिलजी औरतों से ज्यादा बच्चों और बिना दाढ़ी-मूंछ वाले पुरुषों को पसंद करता था. जानिए खिलजी और मलिक काफूर की सनसनीखेज कहानी।

By: Kavita Rajput | Published: October 6, 2025 9:41:21 AM IST



Mughal Harem Secrets: मुगल हरम के किस्से आपने बहुत सुने होंगे, अक्सर यही सुनने में आया होगा कि बादशाह अपने हरम में एक से बढ़कर एक खूबसूरत महिलाओं को रखने के शौकीन होते थे. हालांकि, इन सबसे अलग आज हम आपको एक ऐसे सनकी बादशाह के बारे में बताएंगे जो अपने हरम में महिलाओं से ज्यादा बच्चों और पुरुषों को रखना पसंद करता था. ये सनकी बादशाह कोई और नहीं बल्कि अलाउद्दीन खिलजी था. वही, अलाउद्दीन खिलजी जिसका रोल रणवीर सिंह ने फिल्म पद्मावत में निभाया था. आइये जानते हैं कैसा था खिलजी का हरम…

अलाउद्दीन खिलजी के हरम में पार होती थी हैवानियत की हद, महिलाओं से ज्यादा बच्चों पर थी ‘गंदी’ नज़र!

बच्चों को हरम में रखता था खिलजी 

इतिहासकारों की मानें तो खिलजी को पुरुषों और बच्चों में ज्यादा दिलचस्पी थी. बताते हैं कि वो बाईसेक्सुसल था, यही वजह है कि खिलजी के सबसे करीबियों में मलिक काफूर का नाम सामने आता है. मलिक को खिलजी ने गुजरात जीतने के बाद लगभग 1000 दीनार देकर खरीदा था. ऐसा बताते हैं कि उस दौर में खिलजी को ऐसे पुरुषों की तलाश रहती थी जिनकी दाढ़ी और मूंछें नहीं होती थी और जो दिखने में भी सुंदर होते थे. ऐसे पुरुष खिलजी के हरम की पहली चॉइस हुआ करते थे. वहीं, कई किताबों में इस बात का भी उल्लेख है कि खिलजी ने अपने हरम नें कई बच्चे भी रखे हुए थे. ये वो दौर था जब मुगलों के बीच ‘बच्चाबाजी’ काफी प्रचलित थी. इतिहासकारों की मानें तो खिलजी के हरम में लगभग 70 हजार के करीब बच्चे, औरतें और पुरुष थे. 

अलाउद्दीन खिलजी के हरम में पार होती थी हैवानियत की हद, महिलाओं से ज्यादा बच्चों पर थी ‘गंदी’ नज़र!

मलिक काफूर को बना दिया था सेनापति 

मलिक के प्रति खिलजी की दीवानगी किस कदर थी ये इसी बात से पता चलता है कि उसने अपनी सेना की डोर मलिक को दे दी थी. कई सैन्य ऑपरेशन्स मलिक की अगुआई में ही लड़े गए थे. आपको बता दें कि मुगल काल में हरम एक ऐसी जगह होती थी जहां बादशाह अपनी थकान मिटाने और अय्याशी करने के लिए आया करते थे. यहां, जमकर नाचगाना होता और शराब की महफ़िलें सजती थीं, वहीं, बादशाह जो और जैसा चाहता वैसा ही सबको करना पड़ता था. ना कहने का मतलब ही मौत को दावत देना होता था.

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