Dhanteras 2025: भारतीय परम्परा में धनतेरस और भगवान धन्वंतरि का गहरा संबंध है. कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को ही भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ था. यही कारण है कि इस दिन को धनतेरस कहा जाता है और आयुर्वेद एवं आरोग्य की पूजा की जाती है. वास्तव में भारतीयों के लिए तो यही डॉक्टर्स डे है. एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक हर साल पहली जुलाई को डॉ बिधान चंद्र राय के सम्मान में मना कर उनको याद करते हैं क्योंकि पहली जुलाई ही उनकी जन्म और पुण्य तिथि है. वे प्रतिष्ठित चिकित्सक होने के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री भी थे. सभी जानते हैं कि आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भगवान धन्वंतरि की ही देन है जो सबसे अधिक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है. इसलिए धनतेरस के दिन चिकित्सक दिवस अवश्य ही मनाना चाहिए.
इस तरह मनाएं धन्वंतरि जयंती
धनतेरस का पर्व केवल सोना-चांदी या बर्तन खरीदने का पर्व नहीं है, बल्कि यह दिन स्वास्थ्य, दीर्घायु और रोग मुक्त जीवन की कामना का प्रतीक है. धनतेरस का वास्तविक महत्व आयुर्वेद, आरोग्य और स्वास्थ्य से जुड़ा है. भगवान धन्वंतरि हमें यह संदेश देते हैं कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है. इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से आयु, आरोग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. यदि आप चिकित्सक हैं तो इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करने के बाद औषधियों का निर्माण करें. यदि आप किसी रोग से ग्रस्त हैं और उसके निदान के लिए आयुर्वेदाचार्य द्वारा बताए गए फार्मूले से दवा पाउडर बनाना चाहते हैं तो यह दिन सबसे अधिक उपयुक्त है. यदि कोई युवा सेहत सुधार के लिए जिम ज्वाइन करना चाहता है तो उसे इसी दिन का चुनाव करना चाहिए. यहां तक कि यदि आप काफी समय से मॉर्निंग वॉक के बारे में विचार कर रहे हैं तो इस दिन से शुरू कर सकते हैं.
समुद्र मंथन और धन्वंतरि अवतार
पुराणों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए क्षीरसागर का मंथन किया, तब अनेक दिव्य रत्न प्रकट हुए. सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. उनकी कृपा से देवताओं को अमृत और यज्ञ का भाग वापस मिला, जिसे असुरों ने छीन लिया था. कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान विष्णु स्वयं धन्वंतरि रूप में प्रकट हुए थे. उनका स्वरूप भी श्रीहरि विष्णु के समान श्याम वर्ण और दिव्य था. इसी कारण इस तिथि को हम धनतेरस के रूप में मनाते हैं.
आयुर्वेद का उपहार
भगवान धन्वंतरि ने केवल अमृत ही नहीं दिया, बल्कि संपूर्ण जगत को आयुर्वेद जैसी अमूल्य विद्या प्रदान की. आयुर्वेद के ज्ञान ने अनगिनत रोगों से मुक्ति दिलाई और आज भी इसका महत्व उतना ही है. समाज के लोग स्वर्ण के अमृत भरे कलश को वाह्य रूप से देख कर इस दिन सोना चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदने से जोड़ कर देखते हैं जबकि गूढ़ बात है स्वर्ण कलश का अमृत जो आरोग्य प्रदान करता है.
इंद्र की प्रार्थना पर देवताओं के वैद्य बने
समुद्र मंथन से निकले अमृत का वितरण करने के बाद देवराज इंद्र ने भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना की कि वे देवताओं के वैद्य (डॉक्टर) बन जाएं. भगवान ने यह अनुरोध स्वीकार किया और अमरावती में निवास करते हुए अपने कार्य में लीन हो गए.
इस रूप में फिर से लिया पृथ्वी पर अवतार
कुछ समय बाद जब पृथ्वी पर अनेक बीमारियां फैलने लगी, तब इंद्रदेव ने भगवान से प्रार्थना की. भगवान धन्वंतरि ने काशी के राजा दिवोदास के रूप में अवतार लिया और लोक कल्याण के लिए अनुसंधान कर ऐसी दवाओं का विकास किया जिनसे उन रोगों का नाश हो सका.