Shanidev Rides : आज के समय में हर किसी को आने जाने के लिए गाड़ी- घोड़ा चाहिए होता है लेकिन सनातन धर्म में देवी-देवताओं को साधनों या वाहनों की जरूरत नहीं होती थी, फिर भी 33 कोटि देवताओं ने अपने वाहन चुने हैं. ये वाहन उनके स्वभाव, गुण और संदेश को दिखाते हैं. हर देवता का वाहन उसकी व्यक्तित्व को उजागर करता है, जो उसकी पूजा और मान्यता में विशेष स्थान रखता है.
शनिदेव का वाहन कौआ क्यों?
शनिदेव कौआ की सवारी करते हैं क्योंकि एक पौराणिक कथा के मुताबिक कौवे ने शनिदेव को सूर्यदेव द्वारा लगायी गई आग से बचाया था, जिससे शनिदेव ने उसे अपना वाहन बना लिया. साथ ही कौवा न्याय, सतर्कता और कर्म का प्रतीक हैं, जो शनिदेव के गुणों से मेल खाते हैं.
शनिदेव का वरदान
कौवा पितरों के आश्रय स्थल के रूप में जाना जाता है. उसकी विशेषताओं के कारण शनिदेव ने उसे वरदान दिया है कि वो बीमारी से कभी मरता नहीं. इसका अर्थ ये है कि कौवा जीवन भर रोगमुक्त रहता है और उसकी मृत्यु केवल आकस्मिक घटनाओं से होती है.
देवताओं के वाहन
देवताओं की वाहन की बात करें तो भगवान विष्णु गरुड़ की सवारी करते हैं, जो उनकी शक्ति और उड़ान का प्रतीक है. शिवजी का वाहन नंदी बैल है. ब्रह्माजी का वाहन सफेद हंस है, जो ज्ञान, शांति और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है. देवराज इंद्र हाथी ऐरावत की सवारी करते हैं, जो उनके अधिकार को दर्शाता है.
माता दुर्गा का वाहन बाघ है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है. मां लक्ष्मी ने उल्लू को अपना वाहन बनाया है, जो धन-संपत्ति के साथ-साथ सावधानी का भी सूचक है. कई देवी-देवताओं के वाहन उनके विशेष गुणों को उजागर करते हैं, जो उनकी पूजा-अर्चना में बड़ा रोल निभाते हैं.
विद्या और धन के देवता
मां सरस्वती, जो विद्या की देवी हैं, सफेद हंस पर विराजमान होती हैं. हंस की खासियत ये है कि वो जीवन भर एक ही साथी के साथ रहता है, जो निष्ठा और शुद्धता का प्रतीक है. वहीं, धन की देवी लक्ष्मी ने उल्लू को अपना वाहन बनाया है. उल्लू की दृष्टि तीव्र होती है और ये सावधानी का प्रतीक माना जाता है.
गणेशजी और भैरवदेव के वाहन
गणेशजी ने चूहे को वाहन बनाया है, जो चालाकी का प्रतीक है. चूहा छोटे से छोटे रास्ते से भी गुजर सकता है, जैसे भगवान गणेश सभी बाधाओं को पार कर रास्ता बनाते हैं. भैरवदेव का वाहन कुत्ता है, जिसे काला कुत्ता माना जाता है. कहा जाता है कि कुत्ता होने से आकस्मिक मृत्यु से बचाव होता है, इसलिए भैरव देव की पूजा में इसका विशेष महत्व है.