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Pitru Paksha 2025: जानें श्राद्ध का महत्व और धार्मिक मान्यता

Pitru Paksha 2025: हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है।मान्यता है कि इस दौरान किए गए कर्म सीधे पूर्वजों तक पहुँचते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को सुख-समृद्धि प्रदान करता है।

By: Komal Kumari | Published: September 13, 2025 8:52:12 AM IST



Pitru Paksha 2025: हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह समय वर्ष का वह पवित्र दौर है, जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान किए गए कर्म सीधे पूर्वजों तक पहुँचते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को सुख-समृद्धि प्रदान करता है। पितृपक्ष कुल 16 दिनों तक चलता है और प्रत्येक तिथि अलग-अलग श्राद्ध से जुड़ी होती है। इनमें नवमी तिथि को मातृ नवमी श्राद्धकहा जाता है, जिसका महत्व विशेष रूप से परिवार की दिवंगत महिलाओं के लिए होता है।

 

मातृ नवमी श्राद्ध 2025 की तिथि और मुहूर्त

 

वर्ष 2025 में पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से होगी और इसका समापन 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। इस दौरान 15 सितंबर 2025 को मातृ नवमी श्राद्ध मनाया जाएगा। कुटुप मुहूर्त: सुबह 11:51 से 12:41 बजे तक, रोहिणी मुहूर्त: 12:41 से 1:31 बजे तक,अपराह्न काल: दोपहर 1:31 से 3:52 बजे तक इन समयों पर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना श्रेष्ठ फलदायी माना गया है।

 

महत्व

 

मातृ नवमी श्राद्ध का संबंध परिवार की दिवंगत महिला सदस्यों से है। इस दिन माँ, दादी, नानी, बहन या पत्नी जैसे संबंधों में गुज़र चुकी महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। यदि मृत्यु की सही तिथि ज्ञात न हो तो भी इस नवमी पर श्राद्ध करना उत्तम माना जाता है। साथ ही, जिन लोगों की मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध से मातृ शक्ति प्रसन्न होती है और घर में सुख-शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि का वास होता है।

 

पूजा विधि

 

स्नान और शुद्धिकरण सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहनें और घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करें।

 

 तर्पण गंगाजल या पवित्र जल में तिल मिलाकर दिवंगत आत्माओं को जल अर्पित करें।

 

पिंडदान चावल, आटा या अन्य अन्न से बने पिंड घी और तिल मिलाकर अर्पित करें। माना जाता है कि इससे आत्मा तृप्त होती है।

 

 भोजन और प्रसाद सात्विक भोजन तैयार करें, जिसमें प्याज और लहसुन न हो। यदि संभव हो तो वही व्यंजन बनाएं जो दिवंगत महिला को पसंद थे।

 

दान-पुण्य ब्राह्मणों को भोजन कराएं और जरूरतमंदों को अन्न, कपड़े या धन का दान करें।

 

 मंत्र और स्मरण अपने गोत्र और पूर्वजों के नाम लेकर उन्हें याद करें और शांत मन से मंत्र जाप करें।

 

नियम और सावधानियाँ

 

मातृ नवमी श्राद्ध के दिन मांसाहार, मदिरा सेवन और शोर-शराबे से बचना चाहिए। विवाह या मांगलिक कार्य इस अवधि में वर्जित हैं। पूजा के समय अहंकार, क्रोध और विवाद जैसी नकारात्मक भावनाओं से दूर रहना आवश्यक है। श्रद्धा और भक्ति से की गई साधारण पूजा भी फलदायी होती है।

 

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