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रात के अंधेरे में क्यों निकलती थीं मुगल हरम की औरतें? यमुना किनारे का ‘राज’ नहीं पता होगा आपको

Mughal Harem Secrets: मुगल हरम से जुड़े ऐसे कई राज हैं, जिनके बारे में आज भी लोगों को नहीं पता है. आइए, यहां जानते हैं कि आखिर रात के अंधेरे में किले से निकलकर मुगल हरम की औरतें यमुना क्यों जाती थीं?

By: Prachi Tandon | Last Updated: September 11, 2025 3:03:08 PM IST



Mughal Harem Dark Secrets: मुगल काल की जब-जब बात छिड़ती है तो हरम का जिक्र भी होता है. हरम एक ऐसी जगह होती थी जहां मुगल बादशाहों की बीवियां, शहजादियां और रखैलें रहा करती थीं. ऐसे तो हरम की जिंदगी ऐश और आराम वाली होती थी. लेकिन, यह जिंदगी लाख बंदिशों के साथ आती थी. जी हां, मुगल हरम में रहने वाली कोई भी महिला बादशाह की इजाजत के बिना बाहर कदम नहीं रख सकती थी. यहां तक कि कोई बाहरी व्यक्ति भी अंदर नहीं आ सकता था. मगर, तमाम कड़े नियमों और पहरे के बावजूद हरम की औरतें रात के अंधेरे में किले से निकलती थीं और यमुना किनारे जाया करती थीं.

रात में किले से क्यों निकलती थीं मुगल हरम की औरतें?

मुगल बादशाह अकबर ने जब दिल्ली को अपनी राजधानी और यमुना किनारे किला बनवाया तो इसका भरपूर फायदा भी उठाया. उस समय यमुना का पानी बेहद साफ हुआ करता था. ऐसे में बादशाह ने नौका-विहार से लेकर अपनी शाही रानियों के लिए यमुना किनारे मनोरंजन से लेकर स्नान की व्यवस्था की थी.

रात के अंधेरे में क्यों निकलती थीं मुगल हरम की औरतें? यमुना किनारे का ‘राज’ नहीं पता होगा आपको

यही वजह है कि रात के अंधेरे में मुगल हरम की औरतें किले से बाहर निकलती थीं और अपनी दासियों के साथ नदी में नहाने, कभी इत्र और फूलों से सजाए गए पानी में खेल-तमाशा करने, तो कभी अपनी उदासी मिटाने के लिए जाती थीं. इतना ही नहीं, हरम की औरतों का रात के समय किले से बाहर निकलना गुप्त मुलाकातों का समय भी होता था. कहा जाता है कि मुगल हरम की शहजादियां, शाही बेगमें और दासियां रात के समय में अपने प्रेमियों से भी मिलती थीं. वहीं, हरम की औरतों की रक्षा के लिए किन्नर जाया करते थे। यह ज्यादातर वही होते थे, जो हरम की पहरेदारी करते थे।

मुगल काल में यमुना किनारे होता था मनोरंजन!

जी हां, इस बात का जिक्र फ्रांस के ट्रैवलर फ्रांस्वा बर्नियर ने अपनी किताब ‘इन द मुगल एम्पायर’ में किया है. किताब के मुताबिक, अकबर के शासन में रात के समय अंधेरे में यमुना नदी में शाही नावें तैरा करती थीं. इन नावों को बजरा कहा जाता था. अंधेरे से निपटने के लिए नांवों पर दीपक जलते थे और मधुर संगीत की धुन बजा करती थी. 

मौजूदा जानकारी के मुताबिक, गर्मियों के मौसम में यमुना की लहरों पर शाही नावें बांध दी जाती थीं और बादशाह उनमें सोया करते थे. जिससे वह तपती गर्मी में पानी की ठंडी हवा में चैन से आराम फरमा सकें.

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