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LRLACM Air-Launched Missile: भारत के हिस्से में आया तबाही मचाने वाला यंत्र, दुश्मन होगा ध्वस्त

Long-Range Strike: भारत के इतिहास में एक और नई मिसाइल शामिल होने जा रही है जो कि शांति से दुश्मन ठिकानों को नष्ट कर सकती है। DRDO के इस प्रोजेक्ट में क्या है ख़ास? आइए जाने विस्तार से।

By: Sharim ansari | Last Updated: September 7, 2025 5:09:27 PM IST



DRDO: भू-राजनीतिक कारणों के चलते भारत की रक्षा प्रणाली को मज़बूत करना अब कोई विकल्प नहीं बल्कि जरुरत बन चुका है। पड़ोसी देशों से तनाव बढ़ने के दरमियान DRDO लेकर आया है लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल (LRLACM) एयर-लॉन्च जिसकी रेंज है 1000 किमी। इसमें माणिक स्मॉल टर्बोफैन इंजन (STFE) जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया है। निर्भय क्रूज़ मिसाइल प्रोग्राम के तहत इसको बनाया गया है।

एयर-लॉन्च का विवरण

इस एयर-लॉन्च का वज़न लगभग एक टन है, लंबाई 6 मीटर और 0.52 मीटर का डायमीटर है। इसकी रेंज 1000 किमी से अधिक है (अनुकूलित सेटअप में संभावित रूप से 1500 किमी तक), यह कन्वेंशनल या परमाणु वारहेड ले जा सकता है, जिसे शुरू में प्रोजेक्शन के लिए थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल वाले एक ठोस रॉकेट बूस्टर द्वारा संचालित किया जाता है, और फिर सबसोनिक उड़ान के लिए माणिक टर्बोफैन इंजन द्वारा संचालित किया जाता है। नेविगेशन के लिए ब्रह्मोस मिसाइल की तरह टर्मिनल होमिंग के लिए एक आर एफ सीकर के साथ इनर्शियल नेविगेशन, जीपीएस और रेडियो अल्टीमीटर इस्तेमाल होता है।

एयर-लॉन्च का विवरण

Su-30MKI या तेजस Mk2 जैसे प्लेटफ़ॉर्म में LRLACM का इस्तेमाल किया जाएगा। यह दुश्मन के राडार को चकमा दे सकती है और हवाई लॉन्च से मिसाइल की रेंज बढ़ जाती है। लॉन्च के बाद कम ऊँचाई (ट्री-टॉप लेवल) पर उड़ान भरते हुए, यह रडार क्रॉस-सेक्शन को कम करने के लिए अपने आकार को ज़मीन के आकार के हिसाब से ढाल सकता है, जिससे दुश्मन का एयर डिफेन्स सिस्टम इसको आसानी पता लगाने से रोक सकता है। इसकी सबसोनिक स्पीड इसको शांत बनाती है। 200-450 किलोग्राम का इसका वारहेड कमांड सेंटर, एयरफ़ील्ड या मिसाइल साइट्स जैसे बड़े टार्गेट्स को नष्ट करने की क्षमता रखता है। 

इस एयर-लॉन्च के वजूद में आने से भारतीय वायुसेना (IAF) एक प्रोएक्टिव पावर प्रोजेक्टर बन जाएगी। लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के नज़दीक चाइना के हाई-ऑल्टिट्यूड एडवांटेज को खत्म कर सकती है और एयर सुपीरियरिटी मिशन के लिए इसे टू-फ्रंट वॉर की स्थिति में तैयार कर सकती है।

इसका घरेलू निर्माण इम्पोर्ट पर निर्भरता कम करेगा जिससे नए रोज़गार बढ़ेंगे और तकनीकी परिवर्तन को बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत को दुनियावी स्तर पर मिसाइल एक्सपोर्टर के रूप में उभरने का मौका भी प्राप्त हो सकता है। बता दें कि 20 अतिरिक्त फ्लाइट ट्रायल्स के साथ इंटीग्रेशन टेस्टिंग की आवश्यकता है, ताकि वर्ष 2027-28 तक इसे इस्तेमाल में लाया जा सके।

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