India Nepal On Lipulekh: भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख दर्रे को लेकर विवाद चल रहा है। अब खबर सामने आई है कि इस मुद्दे को नेपाल के पीएम के. पी. शर्मा ओली ने चीन के सामने उठाया है। ओली को लगा था कि, चीन इस मुद्दे पर नेपाल का साथ देगा, जिससे भारत पर दबाव पड़ेगा। लेकिन हुआ कुछ ऐसा जो किसी ने भी नहीं सोचा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने इसे द्विपक्षीय मुद्दा बताकर खुद को इससे अलग कर लिया है।
असल में हाल ही में चीन में हुए SCO समिट में पहुंचे ओली ने बीते 30 अगस्त को चीन के तियानजिन में जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान लिपुलेख दर्रे को नेपाल का हिस्सा बताया और कहा कि वह भारत से इस बारे में बात करें। लेकिन दाव उलटा पड़ गया।
चीन ने झाड़ा अपना पल्ला
ओली और जिनपिंग की मुलाकात को लेकर बीजिंग स्थित नेपाल दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘लिपुलेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार पर भारत और चीन के बीच हाल ही में बनी सहमति का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि यह क्षेत्र नेपाल का है और नेपाल सरकार ने इस पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।’
19 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी की नई दिल्ली यात्रा के दौरान, भारत और चीन के बीच लिपुलेख को द्विपक्षीय व्यापार मार्ग के रूप में फिर से खोलने के लिए हुए एक समझौते का नेपाल में व्यापक विरोध हुआ था।
नेपाल बताता है अपना हिस्सा, भारत ने किया खारिज
नेपाल लिपुलेख को अपना हिस्सा बताता है, जबकि भारत कई बार इन दावों को खारिज कर चुका है। अब लिपुलेख के रास्ते भारत और चीन के बीच व्यापार फिर से शुरू हो रहा है, जो नेपाल को पसंद नहीं आ रहा है और वह लगातार इसका विरोध कर रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री सचिवालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि पीएम ओली ने भारत और चीन के बीच नेपाली क्षेत्र लिपुलेख को व्यापार मार्ग के रूप में इस्तेमाल करने के समझौते पर स्पष्ट रूप से अपनी आपत्ति जताई।
लिपुलेख एक द्विपक्षीय मुद्दा – चीन
वैसे, इस मामले पर चीन और नेपाल दोनों की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई है। लेकिन ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल के विदेश सचिव अमृत बहादुर राय ने मीडिया को बताया कि शी जिनपिंग ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “लिपुलेख एक पारंपरिक सीमा दर्रा है, और इसे उसी के अनुसार संचालित करने के लिए एक समझौता हुआ है।
चीन नेपाल के दावे का सम्मान करता है, लेकिन चूंकि सीमा विवाद (भारत और नेपाल के बीच) एक द्विपक्षीय मुद्दा है, इसलिए इसे दोनों पक्षों को सुलझाना होगा।”
आपको बता दें कि इससे पहले साल 2020 में चीन ने इस इलाके पर दावा करने के लिए एक नक्शा प्रकाशित किया था, जिसका भारत ने विरोध किया था। भारत लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी पर अपना दावा करता है।
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