Astrology Tips: ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति की उम्र उसकी जन्म कुंडली से पता लगाई जा सकती है। लंबी उम्र, औसत उम्र या छोटी उम्र के संकेत मुख्य रूप से लग्न, अष्टम भाव (आयु भाव), ग्रहों की दशा-भुक्ति और आयु से जुड़े ग्रहों से मिलते हैं। जब कुंडली में कुछ खास अशुभ योग बनते हैं, तो असमय मृत्यु यानी अकाल मृत्यु का संकेत मिलता है। आइए जानते हैं कि कौन से ग्रह और भाव अकाल मृत्यु के लिए जिम्मेदार होते हैं।
कुंडली का 8वां भाव आयु से संबंध
ज्योतिष में कुंडली का 8वां भाव आयु का भाव माना जाता है। अगर यह भाव शनि, मंगल, राहु या केतु जैसे पाप ग्रहों से प्रभावित हो और शुभ ग्रहों का सहयोग न मिले, तो व्यक्ति की आयु कम हो सकती है। साथ ही, अगर अष्टम भाव का स्वामी 6वें, 8वें या 12वें भाव में हो, तो असमय मृत्यु यानी अकाल मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।”
लग्न का कमजोर होना
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, अगर कुंडली में लग्न या लग्नेश (लग्न का स्वामी) नीच राशि में हों, शत्रु राशि में हों या पाप ग्रहों से प्रभावित हों, तो व्यक्ति की आयु पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। अगर लग्नेश और 8वें भाव का स्वामी दोनों अशुभ स्थिति में हों, तो अकाल मृत्यु की संभावना और बढ़ जाती है।
मंगल का प्रभाव
अगर मंगल और शनि 8वें भाव में हों या अष्टम भाव के स्वामी को प्रभावित करें, तो दुर्घटनाओं, चोट या अकाल मृत्यु के योग बनते हैं। खासतौर पर मंगल और शनि की युति को अशुभ माना जाता है।
राहु और केतु का दुष्प्रभाव
अगर अष्टम भाव में राहु या केतु हों या अष्टमेश पर इनका प्रभाव पड़े, तो अचानक या रहस्यमयी मृत्यु का योग बन सकता है। साथ ही, यदि ये ग्रह आयु से जुड़े अन्य ग्रहों को प्रभावित करें, तो जीवन अस्थिर और जोखिम भरा हो जाता है।
सूर्य और चंद्रमा की स्थिति
सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है। अगर यह 8वें भाव में नीच राशि में हो या राहु-केतु के प्रभाव में हो, तो अकाल मृत्यु की संभावना रहती है। चंद्रमा यदि नीच राशि में हो और पाप ग्रहों से प्रभावित हो, तो मानसिक तनाव, जल दुर्घटना या रोगों के कारण असमय मृत्यु हो सकती है।
अकाल मृत्यु से बचने के उपाय
महामृत्युंजय मंत्र का जप
अकाल मृत्यु से बचने का सबसे प्रभावशाली उपाय है महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जप। प्रतिदिन 108 बार इस मंत्र का उच्चारण करने से मृत्यु का भय कम होता है और आयु लंबी होती है। विशेष रूप से सोमवार और प्रदोष व्रत के दिन इसका जप अधिक फलदायी माना जाता है।
शिव पूजा और अभिषेक
भगवान शिव को मृत्यु के अधिपति के रूप में माना जाता है। जिन जातकों की कुंडली में अशुभ योग हैं, उन्हें नियमित रूप से शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। सावन मास और महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
शनि और मंगल की शांति
यदि कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में हो, तो शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाएं। शनि मंदिर में तिल का तेल, काले तिल और काले वस्त्र का दान करना लाभकारी होता है। मंगल दोष के निवारण के लिए मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करें और गुड़-चना चढ़ाएं।
राहु-केतु की शांति
यदि राहु या केतु अष्टम भाव को प्रभावित कर रहे हों, तो नाग-नागिन की पूजा करनी चाहिए। राहु-केतु दोष निवारण के लिए त्र्यंबकेश्वर (नासिक) या उज्जैन महाकाल मंदिर में कालसर्प दोष शांति पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है।
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