Rahul Gandhi: बिहार में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा का आज यानि शनिवार (30 अगस्त को आखिरी दिन है। वहीँ, इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी को मां को गाली दिए जाने का मुद्दा काफी सुर्ख़ियों में रहा। माना जा रहा राहुल गांधी ने जितनी विपक्ष के पक्ष में राजनीतिक जमीन तैयार की थी। उस पर ये मुद्दा पानी फेरता नजर आया।
इसके अलावा, कांग्रेस की मानें तो राहुल गांधी से मिलने और उन्हें सुनने के लिए बिहार में भारी भीड़ उमड़ रही है। इसमें कोई शक नहीं कि राहुल और तेजस्वी यादव की वोट अधिकार यात्रा ने बिहार में हलचल मचा दी है। कम से कम राहुल गांधी की चमक तो ज़रूर बढ़ी है। तेजस्वी यादव जैसे बिहार के कद्दावर नेता भी उनके आगे अनुयायी से ज़्यादा कुछ नहीं लग रहे।
मतदाता अधिकार यात्रा: बिहार में कांग्रेस का स्वर्णिम काल
सवाल यह उठता है कि लगभग तीन दशकों से लालू यादव के सहारे बिहार में घिसटती रही कांग्रेस के लिए स्वर्णिम काल आ गया है। क्या बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस की हिस्सेदारी अब पिछले चुनावों के मुकाबले बढ़ने की उम्मीद है? क्या ऐसा लगता है कि कांग्रेस अब बिहार में राजद के साथ बराबरी पर सीटों का बंटवारा कर सकती है? या फिर बिहार में कांग्रेस की लोकप्रियता सिर्फ़ गांधी परिवार का चिराग देखने तक सीमित है? आइए देखते हैं कि बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस के साथ क्या चल रहा है?
वोट जनाधिकार यात्रा में राहुल मुख्य भूमिका में
राहुल गांधी ने भले ही राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ मतदाता अधिकार यात्रा शुरू की हो, लेकिन इसे उनके नाम से ही जाना जा रहा है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाने में राहुल गांधी की मुख्य भूमिका रही है। 16 दिनों और 1,300 किलोमीटर लंबी यह यात्रा सीमांचल, मिथिला और मगध जैसे इलाकों से होकर गुजरी। जब राहुल मोटरसाइकिल चलाते हैं, तो उनका बाइक अवतार चर्चा का विषय बन जाता है। जब वे मखाने के खेतों में जाते हैं, तो लोग किसानों की चर्चा करने लगते हैं। इन सबके बीच, तेजस्वी की कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है।
इतना ही नहीं, बीबीसी की एक रिपोर्ट की मानें तो वोट जनाधिकार यात्रा में राजद के झंडे कम ही नज़र आ रहे हैं। जिस तरह से वोट अधिकार यात्रा कांग्रेस के झंडों और पोस्टरों से भरी पड़ी है, उससे लगता है कि इस पूरे अभियान को कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया है। ज़ाहिर है इससे दोनों दलों के बीच खींचतान मची हुई है। कम से कम कार्यकर्ताओं तक तो यही संदेश जा रहा है। इसीलिए राजद कार्यकर्ता रैली के बीच में तेजस्वी यादव के सीएम बनने के नारे लगाना नहीं भूलते।
कांग्रेस और राजद में सीटों के बंटवारा?
बता दें, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं, जिनमें से वह सिर्फ़ 19 सीटें ही जीत पाई थी। इस बार कांग्रेस लंबे समय से 70 या उससे ज़्यादा सीटों की मांग कर रही है। अब कांग्रेस वोट अधिकार यात्रा की सफलता में राहुल गांधी की भूमिका का उदाहरण भी देगी। ज़ाहिर है, कांग्रेस कम से कम 100 सीटें पाने की कोशिश करेगी।
लेकिन क्या यह संभव है? कांग्रेस ने उन 70 सीटों का डेटा विश्लेषण किया जहाँ वह बहुत कम अंतर से हारी थी। इससे उनकी सीटों की माँग और मज़बूत होती है। कांग्रेस ने बिहार में चुनावी तैयारियाँ सबसे पहले शुरू करके अपने इरादे पहले ही स्पष्ट कर दिए थे। कृष्णा अल्लावरु को नया राज्य प्रभारी और दलित नेता राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने दलित-ओबीसी मतदाताओं को जोड़ने की अपनी रणनीति दिखाई थी।
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बार-बार बिहार दौरा यह स्पष्ट सन्देश देता है कि इस बार कांग्रेस बिहार चुनाव को लेकर काफ़ी गंभीर है। जातिगत जनगणना और वोट चोरी को मुद्दा बनाकर राहुल गांधी पहले ही राजद को रक्षात्मक मुद्रा में ला चुके हैं। तेजस्वी ने राहुल को बड़ा भाई और 2029 के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताया, जिससे गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति मज़बूत होती है। ज़ाहिर है, कांग्रेस सीट बंटवारे में भी बड़े भाई का सम्मान पाना चाहेगी। लेकिन अगर राजद कांग्रेस को 100 सीटें देती है, तो उसे अपनी सीटें कम करनी पड़ेंगी। जो तेजस्वी को मंज़ूर नहीं है।
वहीँ, सीपीआई (एमएल) ने 42, सीपीआई ने 24 और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने भी 60 सीटों की माँग की है। पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी भी 6-8 सीटें चाहती है। वहीँ, बिहार चुनाव पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि वोटर अधिकार यात्रा के दौरान, कांग्रेस को मिले समर्थन के वावजूद भी 100 सीटें मिलना मुश्किल है।
2020 में, कांग्रेस का स्ट्राइक रेट (70 में से 19 सीटें, 27%) राजद (75/144, 52%) और सीपीआई (एमएल) (12/19, 63%) से कम था। राजद इसी आधार पर कांग्रेस को कम सीटें देने का तर्क देगा। इस तरह, महागठबंधन में कांग्रेस के लिए 100 सीटें पाना असंभव लग रहा है।