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Ganesh Chaturthi 2025: आखिर कहां है गणपति का असली सिर? पौराणिक मान्यता पढ़कर आप रह जाएंगे दंग

Ganesh Chaturthi 2025: भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इसी वजह से हर साल भक्तजन धूमधाम से गणेश चतुर्थी मनाते हैं हम सभी जानते हैं कि गणेश जी का धड़ मानव का और सिर हाथी का है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि उनके असली सिर का क्या हुआ? आइए समझतें हैं इसके बारे में..

By: Shivashakti Narayan Singh | Last Updated: August 25, 2025 3:55:27 PM IST



Ganesh Chaturthi 2025: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसी वजह से हर साल भक्तजन धूमधाम से गणेश चतुर्थी मनाते हैं और बप्पा को अपने घर आमंत्रित करते हैं। इस साल गणेश चतुर्थी 27 अगस्त को मनाई जाएगी। जगह-जगह पंडाल सजाए जा चुके हैं और मंदिरों में भी विशेष सजावट की जा रही है। गणपति जी से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं,चाहे उनके जन्म की हो, उनके प्रिय भोग मोदक की या फिर माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ी घटनाओं की। हम सभी जानते हैं कि गणेश जी का धड़ मानव का और सिर हाथी का है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि उनके असली सिर का क्या हुआ? आइए समझतें हैं इसके बारे में

गणेश जी का कटा सिर

कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणपति जी का सिर काट दिया था। बाद में माता पार्वती के निवेदन पर भोलेनाथ ने उनके धड़ पर हाथी का सिर स्थापित किया। लेकिन असली सिर, जिसे शिवजी ने काटा था, आज भी सुरक्षित माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने उस सिर को एक रहस्यमयी गुफा में रख दिया था, जिसे पाताल भुवनेश्वर गुफा कहा जाता है। यह गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां गणेश जी को ‘आदि गणेश’ के रूप में पूजा जाता है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा का महत्व और रहस्य

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस गुफा की खोज सबसे पहले त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने की थी। बाद में द्वापर युग में पांडवों ने इसे ढूंढा और भगवान शिव की उपासना की। कलियुग में आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस गुफा को पुनः प्रकट किया। गुफा लगभग 90 फीट नीचे स्थित है और प्रवेश के लिए बहुत संकरा रास्ता है। इसकी दीवारों और चट्टानों पर अद्भुत आकृतियाँ बनी हैं,कहीं शेषनाग की झलक मिलती है तो कहीं भगवान शिव की जटाओं का आभास होता है। कहा जाता है कि यहां गणेश जी के शिला रूपी मस्तक पर ब्रह्मकमल से दिव्य बूंदें गिरती रहती हैं। मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव यहां विराजमान होकर गणपति के सिर की रक्षा करते हैं।

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