ISRO Gaganyan Mission: भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को पहला इंटीग्रेटेड एयर-ड्रॉप परीक्षण (IADT-01) सफलतापूर्वक किया।
यह परीक्षण गगनयान कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने वाले पैराशूट सिस्टम की पुष्टि के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण है।
यह महत्वपूर्ण परीक्षण श्रीहरिकोटा से किया गया और इसमें भारतीय वायु सेना (IAF), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल सहित कई एजेंसियों के समन्वित प्रयास शामिल थे। परीक्षण के बाद अपने आधिकारिक बयान में इसरो ने कहा, “यह गगनयान के लिए पैराशूट-आधारित मंदन प्रणाली का संपूर्ण प्रदर्शन था।”
परीक्षण के दौरान किया गया हर चीज का मूल्यांकन
इस अभ्यास में पुनः प्रवेश के दौरान तैनात किए जाने वाले संपूर्ण पैराशूट अनुक्रम का मूल्यांकन किया गया। इस प्रणाली में प्रारंभिक ब्रेकिंग के लिए दो ड्रोग पैराशूट, उसके बाद पायलट शूट और तीन बड़े मुख्य पैराशूट हैं, जिन्हें क्रू मॉड्यूल के स्थिर अवतरण और सुरक्षित स्पलैशडाउन को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
For the Gaganyaan missions, ISRO successfully completes the first Integrated Air Drop Test (IADT-01), which is an end-to-end demonstration of a parachute-based deceleration mechanism. 🪂 pic.twitter.com/WtRMbNMHGn
— ISRO InSight (@ISROSight) August 24, 2025
क्या है इस परीक्षण का महत्व?
यह परीक्षण इस मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित वापस लाना है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पैराशूट प्रणाली त्रुटिहीन रूप से कार्य करे, क्योंकि यह अंतरिक्ष यान के अग्निमय पुनःप्रवेश के दौरान उसकी गति को धीमा करने और उसे सुरक्षित रूप से समुद्र तक पहुँचाने के लिए ज़िम्मेदार होगी।
भारत के गगनयान पर एक नजर
दिसंबर 2025 में प्रक्षेपित होने वाला भारत का गगनयान मिशन, पृथ्वी की निचली कक्षा में मानव मिशन के परीक्षण का भारत का पहला प्रयास होगा। 2028 में प्रक्षेपित होने वाला अगला मानवयुक्त मिशन, भारत को स्वतंत्र मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान क्षमता प्राप्त करने वाला चौथा देश बना देगा।
गगनयान के लिए बनाया गया यह पैराशूट तीन सदस्यीय चालक दल को तीन दिनों तक लगभग 400 किलोमीटर की कक्षा में ले जाने और फिर उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के लिए बनाया गया है।
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