Vinod Pasayat: संबलपुरी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि, लेखक, गीतकार और नाट्य संयोजक पद्मश्री विनोद पसायत का बुधवार सुबह निधन हो गया। वे 91 वर्ष के थे। वृद्धावस्था संबंधी बीमारी के इलाज के लिए उन्हें संबलपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
विनोद पसायत का जन्म 3 दिसंबर 1935 को बलांगीर जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्हें नाटक और अभिनय में रुचि थी। जब वे 10 वर्ष के थे, तब उन्होंने पहली बार बाल कलाकार के रूप में एक नाटक में अभिनय किया, फिर वर्ष 1953 में वे संबलपुर आ गए।
वे एक पेशेवर कलाकार थे, इसलिए उन्होंने यहाँ आकर एक सैलून खोला। यह सैलून उनके परिवार की आय का मुख्य स्रोत था। फिर उन्होंने इस काम के साथ-साथ गीत और कविताएँ लिखना भी शुरू कर दिया। संबलपुरी गीत-काव्य ने उन्हें कम समय में ही प्रसिद्धि दिला दी।
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उन्होंने संबलपुरी भाषा साहित्य में बहुत योगदान दिया है। पद्मश्री प्राप्त करने से पहले, उन्हें कई राज्य स्तरीय साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके थे।
उन्हें वर्ष 2008 में राज्य सरकार का ट्रांसमैन पुरस्कार, 2010 में ओडिशा साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2019 में ओडिशा संगीत नाटक अकादमी द्वारा शारदा प्रसन्ना पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष 2023-24 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
उन्हें संबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा पश्चिम ओडिशा संस्कृति पुरस्कार सहित कुल 45 पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
उन्होंने “ऐ नानी सुलोचना..”, “है कृष्णा है कृष्णा बोली जन मोर जीवन” जैसे लोकप्रिय संबलपुरी गीतों की रचना की है और ओडिया फिल्मों “समर्पण”, “आदिवासी” और “पर सेठारा” के लिए भी गीत लिखे हैं। इसके साथ ही, उन्होंने “उखी”, “मुई नाई मारेन” जैसे 12 संबलपुरी नाटकों की रचना की है।
उनके चले जाने से साहित्य जगत को बड़ा नुकसान हुआ है।