Indian Fighter Jets: ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को धूल चटाकर भारतीय वायुसेना ने पूरी दुनिया को अपनी ताकत का परिचय दिया है। इसके बावजूद, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय वायुसेना इस समय लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रही है। लेकिन इस कमी को दूर करने की पूरी तैयारी कर ली गई है। खबरों के मुताबिक, भारतीय वायुसेना अपने बेड़े में F-35 या SU-57 की जगह और राफेल शामिल कर सकती है।
दरअसल, लड़ाकू विमानों की कमी को पूरा करने के लिए भारतीय वायुसेना अब MRFA परियोजना के तहत और राफेल लड़ाकू विमानों की मांग कर रही है। मतलब, F-35 या SU-57 का पत्ता कट चुका है।
राफेल लड़ाकू विमानों के लिए IAF ने की वकालत
भारतीय वायु सेना ने 114 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान (एमआरएफए) खरीदने की अपनी लंबे समय से लंबित परियोजना के तहत और अधिक राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ सरकार-से-सरकार समझौते की पुरज़ोर वकालत की है। इस परियोजना के अधिकांश विमानों का निर्माण विदेशी सहयोग से घरेलू स्तर पर किया जाना है। इसका मतलब है कि भारतीय वायु सेना को जल्द ही ‘देसी राफेल’ मिल जाएँगे।
भारत के पास 29 स्क्वायड्रन, जरूरत 42 की
भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस समय भारत के पास सिर्फ़ 29 स्क्वाड्रन हैं। लेकिन कम से कम 42 स्क्वाड्रन की ज़रूरत है। वहीं, अगर हमारे पड़ोसी देशों की बात करें, तो पाकिस्तान के पास 25 स्क्वाड्रन और चीन के पास 66 स्क्वाड्रन हैं। भारत के पास सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान राफेल है। ये 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं। सेना के पास इनके दो स्क्वाड्रन हैं।
MRFA प्रोजेक्ट पर एक नजर
रिपोर्टों के अनुसार, एमआरएफए परियोजना पिछले सात-आठ वर्षों से लंबित है। इसकी प्रारंभिक लागत 1.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई थी। भारतीय वायु सेना अब 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन (प्रत्येक में 16-18 जेट) की घटती ताकत से जूझ रही है। अगले महीने मिग-21 विमानों के सेवानिवृत्त होने के बाद, यह संख्या घटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 29 स्क्वाड्रन रह जाएगी। यहाँ एक और बात ध्यान देने योग्य है कि भारत के पास अभी भी पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान नहीं हैं।