Connaught Place: कनॉट प्लेस जिसे ज़्यादातर लोग सीपी (CP) कहते हैं। इसको दिल्ली का दिल भी कहा जाता है। गोलाकार लेआउट में अरेंजड अपने सफ़ेद कोलोनियल स्टाइल इमारतों के लिए मशहूर कनॉट प्लेस भारत के सबसे लोकप्रिय खरीदारी और व्यापार डेस्टिनेशन में से एक है। दरअसल इसे भारत का सातवां सबसे महंगा खुदरा बाजार भी कहा जाता है। महंगे ब्रांड से लेकर लोकप्रिय खाने-पीने की दुकानों तक, आपकी ज़रूरत की हर चीज़ यहीं मिल जाएगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कनॉट प्लेस का असल मालिक कौन है? जवाब जानकर आप हैरान हो सकते हैं।
कौन हैं कॉनॉट प्लेस का मालिक ?
कई लोगों के सोच के बिल्कुल उलट कोई निजी व्यवसायी या रियल एस्टेट कंपनी कॉनॉट प्लेस का मालिक नहीं है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कनॉट प्लेस की ज़मीन और ज़्यादातर इमारतें भारत सरकार के स्वामित्व में हैं। रोज़मर्रा के रखरखाव और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी दिल्ली नगर निगम (MCD) के पास है।
सरकार से लीज पर ली जाती हैं दुकानें
दिलचस्प बात यह है कि कॉनॉट प्लेस की ज़्यादातर दुकानें, दफ़्तर और व्यावसायिक जगहें लीज पर ली गई ज़मीन पर चलती हैं। वहाँ के व्यवसायों के पास संपत्ति का स्वामित्व नहीं है वे इसे सरकार से लीज पर लेते हैं।
आज़ादी से पहले ये था नियम
आपको बता दें कि भारत की आज़ादी से पहले इनमें से कई संपत्तियाँ बहुत कम दरों पर कभी-कभी तो सिर्फ़ कुछ सौ रुपये में किराए पर दी जाती थीं। उस समय कोई व्यक्ति कितनी दुकानें लीज पर ले सकता है इसकी कोई नियम नहीं था। नतीजतन यह दस्तावेज़ बताते हैं कि कुछ लोगों ने कनॉट प्लेस में 50 दुकानें तक लीज पर ले लीं। पुराने लीज़ समझौतों और किराया नियंत्रण कानूनों की बदौलत इनमें से कई संपत्तियाँ दशकों तक नाममात्र के किराए पर चलती रहीं। वह भी तब जब उनके आसपास का इलाका एशिया के सबसे महंगे खुदरा क्षेत्रों में से एक बन गया।
रॉबर्ट टोर रसेल ने किया था डिज़ाइन
कनॉट प्लेस के शानदार डिज़ाइन का एक कोलोनियल अतीत है। इसे 1920 के दशक में ब्रिटिश वास्तुकार रॉबर्ट टोर रसेल ने डिज़ाइन किया था और इसका निर्माण 1929 और 1933 के बीच हुआ था। इंग्लैंड के बाथ में स्थित रॉयल क्रेसेंट से प्रेरित होकर कनॉट प्लेस को नई दिल्ली का व्यावसायिक केंद्र बनाया गया था और समय के साथ यह वैसा ही बन गया।
तो अगली बार जब आप कनॉट प्लेस की चहल-पहल भरी गलियों से गुज़रें, तो याद रखें दिल्ली का यह प्रतिष्ठित हिस्सा किसी बड़े उद्योगपति या निगम का नहीं है। यह पूरे देश का है।