Home > देश > Nisar Satellite: ISRO-NASA मिलकर करने वाले हैं अंतरिक्ष में बढ़ा धमाका, बना डाला सभी सैटेलाइटों का बाप…चीन के सारे प्लान होंगे फेल

Nisar Satellite: ISRO-NASA मिलकर करने वाले हैं अंतरिक्ष में बढ़ा धमाका, बना डाला सभी सैटेलाइटों का बाप…चीन के सारे प्लान होंगे फेल

ISRO-NASA Nisar Satellite: इसरो के एक आधिकारिक बयान के अनुसार, यह एक L- और S-बैंड, वैश्विक, माइक्रोवेव इमेजिंग मिशन है जिसमें पूर्ण रूप से पोलरिमेट्रिक और इंटरफेरोमेट्रिक डेटा प्राप्त करने की क्षमता है। एक ही प्लेटफ़ॉर्म से S-बैंड और L-बैंड SAR के माध्यम से प्राप्त डेटा वैज्ञानिकों को पृथ्वी ग्रह में हो रहे परिवर्तनों को समझने में मदद करेगा।

By: Shubahm Srivastava | Published: July 28, 2025 8:36:04 PM IST



ISRO-NASA Nisar Satellite: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) 30 जुलाई को शाम 5.40 बजे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एक उपग्रह, निसार, प्रक्षेपित करेंगे। भारत का जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) उपग्रह को 98.4 डिग्री के झुकाव के साथ 743 किलोमीटर की सूर्य-समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करेगा।

इसरो और नासा द्वारा पहला संयुक्त पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, निसार, का प्रक्षेपण पृथ्वी अवलोकन प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

निसार क्या है?

निसार एक निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) वेधशाला है जिसे नासा और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, NISAR 12 दिनों में पूरे विश्व का मानचित्र तैयार करेगा और पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, हिमखंड, वनस्पति जैवभार, समुद्र तल में वृद्धि, भूजल और भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन सहित प्राकृतिक आपदाओं में होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए स्थानिक और कालिक रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा।

इसरो के एक आधिकारिक बयान के अनुसार, यह एक L- और S-बैंड, वैश्विक, माइक्रोवेव इमेजिंग मिशन है जिसमें पूर्ण रूप से पोलरिमेट्रिक और इंटरफेरोमेट्रिक डेटा प्राप्त करने की क्षमता है। एक ही प्लेटफ़ॉर्म से S-बैंड और L-बैंड SAR के माध्यम से प्राप्त डेटा वैज्ञानिकों को पृथ्वी ग्रह में हो रहे परिवर्तनों को समझने में मदद करेगा।

आपदा प्रबंधन से लेकर फसल पूर्वानुमान तक करेगा मददे

यह संयुक्त मिशन कई कार्यों को पूरा करेगा, जिसमें वुडी बायोमास और उसके परिवर्तनों को मापना, सक्रिय फसलों के विस्तार में परिवर्तनों पर नज़र रखना, आर्द्रभूमि के विस्तार में परिवर्तनों को समझना और ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों और समुद्री बर्फ और पर्वतीय ग्लेशियरों की गतिशीलता का मानचित्रण करना शामिल है।

इसरो के अनुसार, प्रक्षेपण के बाद पहले 90 दिन कमीशनिंग या इन-ऑर्बिट चेकआउट (आईओसी) के लिए समर्पित होंगे, जिसका उद्देश्य वेधशाला को वैज्ञानिक कार्यों के लिए तैयार करना है।

S Jaishankar on Operation Sindoor: भारत-Pak के बीच नहीं था कोई बिचौलिया, संसद में जयशंकर ‘ट्रंप’ के दावे को किया खारिज, हंगामा काट रहे विपक्ष…

Advertisement