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Vastu Guru Manyyaa Exclusive: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी: चंद्रदेव का श्राप और शिव कृपा की अद्भुत गाथा

Somanath Temple Story: सोमनाथ मंदिर को पहला ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। आइए, इस ज्योतिर्लिंग की कथा के बारे में जानते हैं।

By: Preeti Rajput | Published: July 22, 2025 4:47:54 PM IST



Somanath Temple Story: सोमनाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जो आस्था, तप और शिव कृपा की मिसाल है। यह मंदिर गुजरात के प्रभास पाटन में स्थित है।  इसे पहला ज्योतिर्लिंग माना गया है। इस मंदिर की शुरुआत एक बहुत खास कहानी से जुड़ी हुई है, जो चंद्रदेव और भगवान शिव के बीच की है।

क्यों पड़ा चंद्रदेव को श्राप

चंद्रदेव यानी चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से विवाह किया था। इनमें से उन्हें रोहिणी सबसे प्रिय थीं। चंद्रदेव हमेशा रोहिणी के साथ ही रहते थे, जिससे बाकी पत्नियां दुखी हो गईं। उन्होंने अपने पिता दक्ष जी से इसकी शिकायत की।

दक्ष जी ने चंद्रदेव को समझाया कि सभी पत्नियों के साथ बराबर व्यवहार करें, लेकिन चंद्रदेव ने बात नहीं मानी। इससे नाराज होकर दक्ष जी ने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि उनकी चमक (तेज) खत्म हो जाएगी और वो धीरे-धीरे क्षीण हो जाएंगे।

जब चंद्रदेव को श्राप लगा, तो वो बहुत परेशान हुए और देवताओं के साथ जाकर ब्रह्मा जी से मदद मांगी। ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि अगर वो प्रभास क्षेत्र में जाकर ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करें तो श्राप से मुक्ति मिल सकती है।

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चंद्रदेव प्रभास यानी अब का सोमनाथ पहुंचे और वहीं बैठकर दस करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। मंत्र था:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

भगवान शिव चंद्रदेव के तप से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्हें वर मांगने को कहा। चंद्रदेव ने विनती की कि उन्हें दक्ष जी के श्राप से मुक्ति मिले।

शिव जी ने कहा कि दक्ष जी का श्राप टाला नहीं जा सकता, लेकिन उन्होंने चंद्रदेव को वर दिया कि वो एक पक्ष में घटेंगे (कृष्ण पक्ष) और एक पक्ष में फिर से बढ़ेंगे (शुक्ल पक्ष)। इस प्रकार चंद्रमा की कलाएं घटती-बढ़ती रहेंगी।

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सोमनाथ नाम कैसे पड़ा?

शिव जी ने चंद्रदेव को वचन दिया कि वो हमेशा उनके साथ रहेंगे। इस कारण शिव जी यहां “सोमनाथ” कहलाए – “सोम” यानी चंद्र और “नाथ” यानी स्वामी। देवताओं ने यहां एक ‘कुंड’ बनाया, जिसे चंद्रकुंड कहा जाता है। मान्यता है कि चंद्रदेव ने इसमें स्नान करके अपने श्राप से मुक्ति पाई थी।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इन खबर इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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