क्या आप भी अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी को लेकर बेस्ट ऑप्शन और सबसे अच्छी सर्विस चाहते हैं? तो आपके लिए एक बड़ी खबर है. अब आपकी इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी कंपनियों के लिए दरवाज़े पूरी तरह खुल गए हैं.
सरकार ने इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) की लिमिट को 74% से बढ़ाकर पूरे 100% करने को मंज़ूरी दे दी है. आसान भाषा में कहें तो, अब बड़ी-बड़ी ग्लोबल इंश्योरेंस कंपनियाँ बिना किसी रोक-टोक के भारत में ज़्यादा पैसा लगा सकती हैं, नई टेक्नोलॉजी ला सकती हैं और आपके लिए शानदार नई स्कीमें भी ला सकती हैं.
आइए जानते हैं कि इंश्योरेंस सेक्टर में 100% FDI का क्या मतलब है और इसका इंश्योरेंस सेक्टर पर क्या असर पड़ेगा.
भारत अब इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी इन्वेस्टमेंट के लिए दरवाज़े पूरी तरह खोलने की तैयारी कर रहा है. 1 फरवरी को, फाइनेंस मिनिस्टर ने लोकसभा में इशारा किया था कि सरकार इंश्योरेंस सेक्टर में 100% FDI की इजाज़त देने पर विचार कर रही है. इसके बाद, इस प्रपोज़ल पर फाइनेंस मिनिस्ट्री और दूसरे संबंधित डिपार्टमेंट में चर्चा हुई. अब, इस प्रपोज़ल को कैबिनेट से मंज़ूरी मिल गई है. मंज़ूरी मिलने के बाद, इस फ़ैसले को कानूनी तौर पर लागू करने के लिए इंश्योरेंस एक्ट, 1938 में बदलाव का प्रोसेस शुरू किया जाएगा.
100% FDI की मंज़ूरी में क्या होगा?
सरकार पहले ही साफ़ कर चुकी है कि 100% FDI सिर्फ़ उन अप्रूव्ड इंश्योरेंस कंपनियों को मिलेगा जो अपनी पॉलिसी से जमा हुए प्रीमियम को पूरी तरह से भारत में इन्वेस्ट करेंगी. इससे देश में इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा और कैपिटल का बाहर जाना रुकेगा. ग्लोबल इंश्योरेंस कंपनियों की भारत में एंट्री और विस्तार को आसान बनाने के लिए कई फॉरेन इन्वेस्टमेंट रेगुलेशन को भी आसान बनाया जा रहा है.
सरकार का अनुमान है कि अगले पाँच सालों में इंडियन इंश्योरेंस सेक्टर 7% से ज़्यादा की सालाना दर से बढ़ सकता है. नतीजतन, 100% FDI से सेक्टर में लंबे समय के लिए फॉरेन कैपिटल आएगा, नई टेक्नोलॉजी मिलेगी और नए प्रोडक्ट डेवलप होंगे. इससे कंपनियों के बीच कॉम्पिटिशन बढ़ेगा, जिससे प्रीमियम ज़्यादा होंगे और कस्टमर के पास ज़्यादा चॉइस होगी. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में भी सरकार के इस कदम को इंश्योरेंस सेक्टर को मॉडर्न बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया गया है.
फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट क्या है?
फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट, जिसे अक्सर शॉर्ट में FDI भी कहा जाता है, किसी व्यक्ति या ऑर्गनाइज़ेशन द्वारा दूसरे देश में मौजूद बिज़नेस में किया गया इन्वेस्टमेंट है. पैसे के अलावा, FDI अपने साथ नॉलेज, टेक्नोलॉजी, स्किल्स और एम्प्लॉयमेंट भी लाता है.
FDI के मुख्य फ़ायदे
| क्रमांक | फ़ायदा | संक्षिप्त विवरण |
| 1. | आर्थिक विकास (Economic Growth) | यह बाहरी पूँजी का मुख्य स्रोत है, रेवेन्यू बढ़ाता है, और देश में नई फ़ैक्टरियाँ/इकाइयाँ खोलने में मदद करता है. |
| 2. | रोज़गार के अवसर | सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि से रोज़गार पैदा होता है, जिससे लोगों की आय और देश की क्रय शक्ति (Purchasing Power) बढ़ती है. |
| 3. | मानव संसाधन विकास | ट्रेनिंग, नई टेक्नोलॉजी और बेहतर कार्यप्रणाली के ट्रांसफर से कर्मचारियों (ह्यूमन कैपिटल) के स्किल और ज्ञान में सुधार आता है. |
| 4. | बेहतर टेक्नोलॉजी और फाइनेंस | इन्वेस्टमेंट पाने वाली कंपनियों को लेटेस्ट टेक्नोलॉजी, ऑपरेशनल तरीके और बेहतर फाइनेंसियल टूल्स मिलते हैं, जिससे फिनटेक इंडस्ट्री कुशल बनती है. |
| 5. | अन्य फ़ायदे | पिछड़े क्षेत्रों का विकास, एक्सपोर्ट से रेवेन्यू, विनिमय दर (Exchange Rate) में स्थिरता, पूँजी प्रवाह (Capital Flow) में सुधार और अंतर्राष्ट्रीय संबंध बेहतर होते हैं. |
FDI के मुख्य नुकसान
| क्रमांक | नुकसान | संक्षिप्त विवरण |
| 1. | घरेलू नियंत्रण में कमी | यह घरेलू निवेश को प्रभावित कर सकता है और स्थानीय कंपनियों का नियंत्रण विदेशी फर्मों के पास जा सकता है. |
| 2. | राजनीतिक जोखिम | विदेशी राजनीतिक प्रभाव या दबाव का खतरा बढ़ सकता है. |
| 3. | बाज़ार पर असर | विनिमय दरों (Exchange Rates) और ब्याज दरों को प्रभावित कर सकता है. |
| 4. | स्थानीय इंडस्ट्री पर दबाव | अगर घरेलू इंडस्ट्री विदेशी कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पाती, तो वे बाज़ार में पिछड़ सकती हैं. |
| 5. | सुरक्षा संबंधी चिंताएँ | अनियंत्रित FDI देश को डिजिटल क्राइम जैसे विदेशी खतरों (उदाहरण: हुआवेई मामला) के प्रति संवेदनशील बना सकता है. |
नए नियमों से क्या बदलेगा?
अभी तक, किसी विदेशी इंश्योरेंस कंपनी को भारत में ऑपरेशन शुरू करने के लिए 26% हिस्सेदारी किसी भारतीय पार्टनर को ट्रांसफर करनी पड़ती थी। नए नियम लागू होने के बाद यह ज़रूरत खत्म हो जाएगी. इसका मतलब है कि विदेशी कंपनियां 100% इन्वेस्टमेंट के साथ भारत में आ सकेंगी या अपना बिज़नेस बढ़ा सकेंगी.
फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने कहा है कि यह बदलाव इंडस्ट्री के लिए एक “इनेबलिंग प्रोविज़न” है, यानी इससे विदेशी कंपनियों को ज़्यादा आज़ादी मिलेगी. इससे नई कंपनियों की एंट्री आसान होगी, इंश्योरेंस कवरेज बढ़ेगा और रोज़गार के नए मौके बनेंगे.
यह बदलाव क्यों ज़रूरी है?
अभी भारत में 57 इंश्योरेंस कंपनियां काम कर रही हैं, जिनमें 24 लाइफ इंश्योरेंस और 34 नॉन-लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां हैं। इसके बावजूद, देश में कुल इंश्योरेंस कवरेज अभी भी सिर्फ़ 3.7% है। FY24 में, लाइफ इंश्योरेंस कवरेज 2.8% और नॉन-लाइफ कवरेज सिर्फ़ 0.9% था। इससे पता चलता है कि भारत में इंश्योरेंस सर्विस अभी भी बहुत कम लोगों तक पहुंच रही हैं। सरकार का मानना है कि विदेशी कैपिटल, एक्सपर्टीज़ और मॉडर्न टेक्नोलॉजी के आने से इस स्थिति में तेज़ी से सुधार हो सकता है।
सुधार कैसे आगे बढ़ेंगे?
फाइनेंस मिनिस्ट्री ने “इंडियन इंश्योरेंस कंपनीज़ अमेंडमेंट रूल्स, 2025” का ड्राफ़्ट पहले ही जारी कर दिया है. हालाँकि, “इंश्योरेंस लॉज़ बिल, 2024” को अभी पार्लियामेंट में पेश किया जाना बाकी है. कैबिनेट से मंज़ूरी मिलने के बाद, कानून में बदलाव का प्रोसेस तेज़ हो जाएगा. अभी, लाइफ़ इंश्योरेंस कंपनियों में विदेशी इन्वेस्टर्स की हिस्सेदारी 47.82%, प्राइवेट जनरल इंश्योरेंस कंपनियों में 40.8% और हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों में 29.46% है. सरकार को उम्मीद है कि 100% FDI लागू होने के बाद यह इन्वेस्टमेंट तेज़ी से बढ़ेगा और लंबे समय तक स्थिर रहेगा.