Smriti Mandana’s Sugar Cravings: बहुत-से लोगों के लिए चीनी कम करना केवल इच्छाशक्ति का सवाल नहीं होता. यह वर्षों से बनी दिनचर्या, भावनात्मक आराम, पारिवारिक रीतियों और प्रियजनों के साथ भोजन साझा करने की सहज खुशी से जुड़ा होता है. भारतीय क्रिकेटर स्मृति मंधाना ने हाल ही में यह खुलकर बताया कि अपने आहार से चीनी हटाने की कोशिश उनके लिए कितनी चुनौतीपूर्ण रही.
यूट्यूबर जतिन सप्रू के साथ बातचीत में उन्होंने स्वीकार किया, “मैं वैसे तो खराब खाना नहीं खाती, लेकिन चीनी ऐसी चीज़ थी जिसे मैं छोड़ ही नहीं पा रही थी. अब भी इच्छा तो नहीं होती, पर अगर खाती हूँ तो सिर्फ माँ की खुशी के लिए.”
मंधाना ने आगे बताया कि जब वह सांगली अपने घर जाती हैं, तो खास मौकों पर ही माँ द्वारा प्यार से बनाई गई मिठाइयाँ खा लेती हैं. उन्होंने मुस्कुरा कर याद किया, “माँ कहती हैं— ‘बेटा, नई मिठाई बनाई है.’ अगर उन्होंने जलेबी की नई रेसिपी आज़माई हो और चाह रही हों कि मैं चखूं, तो उनकी खुशी के लिए मैं एक-दो जलेबी खा लेती हूं, अपनी इच्छा से नहीं.’
उनके इन शब्दों में एक आम अनुभव झलकता है—जब मिठाई खाने का आकर्षण व्यक्तिगत चाहत से आगे बढ़कर एक भावनात्मक रिश्ते का हिस्सा बन जाता है. कई लोग तनाव में हों या किसी से जुड़ाव महसूस करना चाहते हों, तो स्वाभाविक रूप से भोजन की ओर खिंच जाते हैं.
लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के इमोशनल ईटिंग को समझकर और उसकी जड़ें पहचानकर बदला जा सकता है. चीनी की craving को संतुलित करने के लिए कुछ mindful विकल्प अपनाए जा सकते हैं—जैसे चाय की धीमी चुस्कियां, बिना चीनी वाला हल्का स्नैक (फल, मेवे आदि), या परिवार के साथ कोई ऐसी गतिविधि जो साथ होने का एहसास बढ़ाती हो.
तनाव से निपटने के लिए भी कुछ स्वस्थ आदतें—जैसे टहलना, जर्नलिंग, या किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करना—भावनात्मक जरूरतों को पूरा करती हैं, बिना मीठे को सहारा बनाए.
क्या मीठा कम पसंद आने लगे तो उसे पूरी तरह छोड़ देना चाहिए?
मिठाई की तलब कम होने के बाद भी उसे जीवन से पूरी तरह हटाना जरूरी नहीं. बल्कि, कभी-कभार योजनाबद्ध तरीके से थोड़ा-सा मीठा खाना खाने के साथ एक सहज और संतुलित रिश्ता बनाए रखता है. उनका कहना है कि पूर्ण परहेज़ अक्सर ‘वंचित होने का भाव’ पैदा कर सकता है, जिससे बाद में अत्यधिक खाने का जोखिम बढ़ जाता है.
समझदारी से चुने गए छोटे-छोटे मीठे विकल्प—जैसे डार्क चॉकलेट का छोटा टुकड़ा, गुड़, या खजूर, किशमिश, चना या सूखे मेवों से बनी भारतीय पारंपरिक मिठाइयां भी मनोवैज्ञानिक लचीलापन बढ़ाती हैं और खाने को अत्यधिक सीमित करने से रोकती हैं.
विशेषज्ञ स्पष्ट करते हैं, “ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि मीठा कितनी बार, कितनी मात्रा में और किस संदर्भ में खाया जा रहा है. स्वास्थ्य संतुलन पर आधारित है, न कि पूर्णता पर.”