Salary Limit Change: संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार को देशभर के कर्मचारियों की सैलरी लिमिट को लेकर चर्चा हुई. लंबे समय से कर्मचारियों की मांग रही है कि वर्तमान सैलरी लिमिट 15,000 रुपये से बढ़ाकर 30,000 रुपये कर दी जाए. इस मामले पर सरकार की तरफ से श्रम और रोजगार मंत्री मनसुख मंडाविया ने हाल ही में बयान दिया है.
क्या सैलरी लिमिट बढ़ेगी?
सांसद बेनी बेहनन के सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि अभी सैलरी लिमिट बढ़ाने का फैसला तुरंत नहीं लिया जा सकता. इसके लिए ट्रेड यूनियन और उद्योग संगठनों जैसे सभी संबंधित पक्षों की राय जरूरी है.
मंत्री ने बताया कि अगर सैलरी लिमिट बढ़ाई जाती है, तो कर्मचारियों की हाथ में मिलने वाली सैलरी (टेक-होम सैलरी) कम हो सकती है क्योंकि पीएफ में ज्यादा पैसा कटेगा. साथ ही, कंपनियों के लिए कर्मचारियों को रखने की लागत भी बढ़ जाएगी. इसलिए सरकार किसी भी बदलाव से पहले सभी पक्षों से चर्चा करेगी.
पहले कब हुई थी सैलरी लिमिट में बदलाव?
सैलरी लिमिट में आखिरी बदलाव साल 2014 में किया गया था. उस समय इसे 6,500 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये प्रति माह किया गया. इसका मतलब है कि अगर किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी 15,000 रुपये है, तो पीएफ कटेगा.
इसके अलावा, अगर किसी की सैलरी 15,000 रुपये से ज्यादा है और वो 1 सितंबर 2014 के बाद नौकरी में शामिल हुआ है, तो उसके लिए पीएफ योगदान वैकल्पिक है.
पीएफ में योगदान का तरीका
कर्मचारी की बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते (DA) का 12% पीएफ (EPF) में कटता है. नियोक्ता भी उतना ही योगदान करता है. नियोक्ता के हिस्से का लगभग 8.33% कर्मचारी पेंशन स्कीम (EPS) में जाता है, जबकि बाकी पीएफ खाते में जमा होता है.
इस तरह कुल मिलाकर कर्मचारी और नियोक्ता मिलकर 24% योगदान करते हैं. कर्मचारी का पूरा हिस्सा EPF में जाता है, जबकि नियोक्ता का हिस्सा EPF, EPS और बीमा (EDLI) में बंट जाता है.