Home > विदेश > Ethiopia: दुनिया से 7 साल पीछे चल रहा इथियोपिया! यहां जानिये इस देश के बारे में 10 रोचक बातें

Ethiopia: दुनिया से 7 साल पीछे चल रहा इथियोपिया! यहां जानिये इस देश के बारे में 10 रोचक बातें

Ethiopia Volcano Eruption: यह रोचक है कि इथियोपिया देश बाकी दुनिया से 7 साल से ज्‍यादा पीछे चल रहा है. इथोपिया का कैलेंडर शेष दुनिया से बिलकुल अलग है.

By: JP Yadav | Last Updated: November 25, 2025 8:43:32 PM IST



Ethiopia Volcano Eruption Update: इथियोपिया में 12,000 साल बाद 23 नवंबर, 2025 को हेली गुब्बी ज्वालामुखी (Hayli Gubbi Volcano) फटा. इसके बाद इथियोपिया दुनियाभर में चर्चा में आ गया है. वैसे ज्वालामुखी फटना धरती की एक बड़ी और प्राकृतिक घटना है. पूरी दुनिया में कहीं ना कहीं ज्वालामुखी फटते ही रहते हैं. सामान्य भाषा में समझें तो धरती के अंदर का मैग्मा बाहर निकलने के लिए आसपास दबाव डालता है. धरती की आंतरिक गर्मी और दबाव के चलते ही ज्वालामुखी फटते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, धरती के अंदर यानी मेंटल (Mantle) में कई पिघली हुई चट्टानें होती हैं. इन्हें ही मैग्मा (Magma) कहा जाता है. ज्वालामुखी फटने की प्रक्रिया के चरण में यही मैग्मा सतह की कमजोर चट्टानों या प्लेटों के किनारों पर अत्यधिक दबाव डालता है. अगली प्रक्रिया में इसके चलते धरती के भीतर का दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है. इसके बाद यह मैग्मा राख और गैस के साथ तेजी से पृथ्वी की पर्पटी (Crust) को तोड़कर बाहर निकल जाता है, जिसे ज्वालामुखी फटना कहते हैं. इथियोपिया में ज्वालामुखी के फटने के बाद यह देश अचानक विश्वभर में चर्चा में आ गया है. इस स्टोरी में हम बताएंगे इथियोपिया के बारे में 10 रोचक बातें. 

1. जमकर मनाए जाते हैं त्योहार

इथियोपिया दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां त्योहार जमकर मनाए जाते हैं. कुल मिलाकर इथियोपिया को त्योहारों का देश भी बोला जाता है. इस देश में 3 दिवसीय टिमकेट त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि यह 3 दिवसीय त्योहार ईसा मसीह के बपतिस्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है. टिमकेट जॉर्डन नदी में मनाया जाता है. इस त्योहार को मनाने के लिए हजारों की संख्या में स्थानीय लोग जुटते हैं. खास बात यह है कि इस त्योहार को मनाने के दौरान सफेद और चमकीला पारंपरिक परिधान पहनना होता है. इस त्योहार को मनाने के दौरान पुजारी हर चर्च से तबोट्स (संधि-संदूक की प्रतिक्रियां) उकेरते हैं. इसके साथ ही नजदीकी नदी तक मार्च करते हैं. यहां पर सामूहिक बपतिस्मा होता है.  यहां पर बता दें कि बपतिस्मा एक ईसाई संस्कार है. किसी व्यक्ति के यीशु मसीह में विश्वास और ईसाई धर्म अपनाने का एक सार्वजनिक प्रतीक है. यह एक प्रक्रिया के तहत किया जाता है. इस कड़ी में एक व्यक्ति को जल में डुबोया जाता है या उस पर जल छिड़का जाता है. 
 

2. अपने समय पर चलता है इथियोपिया 

यहां सूर्योदय 1 बजे और सूर्यास्त 12 बजे होता है. यही वजह है कि इथियोपिया के लोग दिन के घंटों को भी एक अलग समय-सारिणी के अनुसार ही मापते हैं. इस देश में अगर घड़ी दिन के समय से शुरू हो जाए तो यह कम भ्रामक होता है. यहां पर 12 घंटे वाली रात की घड़ी शुरू हो जाती है. ऐसे में बस का टिकट खरीदते के दौरान यह जरूर पूछना चाहिए कि प्रस्थान का समय इथियोपियाई समय में है या पश्चिमी समय में. कुल मिलाकर यह बेहद जटिल भी है. 

3. 13 महीने होते हैं इथियोपिया के कैलेंडर में

पूरी दुनिया में एक साल के दौरान 12 महीने होते हैं. करीब-करीब हर देश इसे मानता  है, लेकिन इस मामले में इथियोपिया थोड़ा अलग है. बताया जाता है कि हजारों वर्ष पहले ही  स्पाइनल टैप की इस मान्यता को इथियोपिया के लोगों ने अपना लिया. इसके तहत वह एक महीने अधिक को मानते हैं. इस लिहाज से इथियोपिया के लोग अपने साल में 12 की बजाय 13 महीने गिनते नजर आ रहे हैं. इस तरह यहां पर एक साल में 13 महीने होते हैं.

4. कभी नहीं रहा यूरोप का गुलाम

यूरोप के ज्यादातर देश भी कभी ना कभी किसी देश के गुलाम रहे. इस मामले में इथियोपिया थोड़ा अलग रहा. यह भी रोचक और हैरान कर देने वाला है कि इथियोपिया कभी भी यूरोपीय लोगों/देशों का ग़ुलाम नहीं रहा. वर्ष 1935 में इटालियंस को उपनिवेशवाद को एक मौका ज़रूर दिया था. 6 वर्ष तक देश पर सैन्य कब्ज़ा करने में सफल रहे, लेकिन इथियोपियाई सेनाएं पूरे समय सैन्य विरोध करती रहीं. कुछ हिस्से पर कब्जा तो हुआ, लेकिन पूरे देश पर कभी नियंत्रण नहीं हो पाया. इस दौरान यहां पर अच्छी इमारतें बनीं और रेलवे लाइन भी बिछा दी गईं. यह अलग बात है कि इस दौरान इथियोपियाई संघर्ष करते रहे और आखिरकार इटालियंस को देश छोड़कर जाना पड़ा. यह बात इथियोपिया के लोग बड़ी शान से बताते हैं. 

5. कॉफी की खोज हुई

पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की सुबह की शुरुआत कॉफी से होती है. इसका स्वाद ना केवल मूड फ्रेश कर देता है, बल्कि अधिक ताजगी भी देता है. भले ही अमेरिका और यूरोप कॉफी पर दावा करें, लेकिन यह सच है कि काफी की खोज इथियोपिया में हुई. बताया जाता है कि एक बकरी चराने वाले ने झुंड को झाड़ी के पास बारीकी से देखा. वहां झुंड में बकरियां एक अनाम फल खा रही थीं.  इस दौरान बकरी चराने वाले ने खुद भी उस फल का स्वाद चखा. बताया जाता है कि यही से कॉफी उद्योग की शुरुआत हुई. कुल मिलाकर कुछ इथियोपियाई बकरियों ने कॉफी की खोज की. दरअसल,  9वीं शताब्दी में यह खोज हुई. इथियोपिया के एक बकरी चराने वाले ने पाया कि जो भी बकरी फल खाती है वह ऊर्जा से भर जाती है. इसके बाद बकरी चलाने वाले ने भी झाड़ी से फल चबाने की कोशिश की. इसके बाद वह इन फलों को तोड़कर अपने मठ में ले गया. अगली कड़ी में एक भिक्षु ने उन्हें आग में डाल दिया. बताया जाता है कि इसकी सुगंध ने भिक्षुओं को बहुत आकर्षित किया. इसके बाद इस फल को गर्म पानी में घोला गया. इस तरह दुनिया में पहली बार कॉफी तैयार हुई. सैकड़ों-हजारों सालों बाद कॉफी अपने इस रूप में है.

6. मानव प्रजाति की उत्पत्ति का दावा

क्या इथियोपिया में ही मानव प्रजाति की उत्पत्ति हुई है? यह सिर्फ दावा नहीं है. कई पुरातात्विक खोजें इथियोपिया के अफ़ार क्षेत्र में हुई हैं, जो इस ओर इशारा करती हैं कि मानव प्रजाति की उत्पत्ति संभवतया यहां हुई होगी. इस दावे के पीछे एक ठोस तर्क भी है. वर्ष 1972 में डोनाल्ड जोहानसन और टिम डी. व्हाइट ने एक 32 लाख साल पुराने मानव कंकाल की खोज की थी, जिसका नाम लूसी था. लूसी की चर्चा काफी वर्षों तक रही. 

7. जीता दो ओलंपिक मैराथन

अबेबे बिकिला नाम का एक इथियोपियाई बहुत सालों तक चर्चा में रहा, क्योंकि वह ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाला पहला अश्वेत अफ़्रीकी बना. वर्ष 1960 में पहला ओलंपिक जीता. हैरत की बात यह है कि इसी देश के दूसरे एथलीट ने तो कमाल ही कर दिया. यह खिलाड़ी अंतिम समय में टीम में चुना गया, लेकिन इसके पैरों में चोट लगी थी. बिकिला नाम के इस एथलीट ने नंगे पैर मैराथन दौड़ने का विकल्प चुना. कमाल यह है कि इसने दमदार मोरक्को के एथलीट रादी बेन अब्देस्सेलम को पूरे 25 सेकेंड से पीछे छोड़ दिया.  इथियोपिया गरीब देश है, लेकिन यहां पर एथलीट खूब पाए जाते हैं. बिकिला के हुनर की बात करें तो 4 वर्ष बाद ही बिकिला ने टोक्यो ओलंपिक जीतकर विश्व रिकॉर्ड बनाया. इस तरह ओलंपिक मैराथन 2 बार जीतने वाले पहले एथलीट बन गए.  

8. इसी देश में हुआ था रस्ताफ़ेरियन आंदोलन

अक्सर लोग सोचते हैं और जानते हैं कि रस्ताफ़ेरियन आंदोलन का जन्मस्थान जमैका है, लेकिन यह सच नहीं है. दरअसल, इथियोपिया रस्ताफ़ेरियन आंदोलन का जन्मस्थान है.  यह कुछ हद तक सही भी है कि रस्ताफ़ेरियन आंदोलन का ज़्यादातर हिस्सा जमैका में विकसित हुआ. यह भी सच है कि असल में इथियोपिया ही इसकी आध्यात्मिक मातृभूमि है. 

9. क्या कहता है इथियोपिया का झंडा?

रस्ताफ़ेरियन आंदोलन के बारे में कहा जाता है कि इसका अम्हारिक भाषा से भी रिश्ता है. अम्हारिक भाषा में ‘रास’ एक उपाधि है, जिसका मतलब मुखिया (Chief) के समान होता है. वहीं, ‘तफ़ारी’ सम्राट हैली सेलासी प्रथम का पहला नाम है. यह भी रोचक है कि  रस्ताफ़ेरियन आंदोलन मूलतः सेलासी को ईश्वर का अवतार मानता है. खास बात यह है कि इथियोपिया के झंडे के रंग को देखने पर बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है. 

10. जान लें अदीस अबाबा के बारे में 

10. इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा है. इसका अर्थ होता है- नया फूल. इस शहर की रोचक बात यह है कि यह दुनिया के सबसे ऊंचे राजधानी शहरों में से एक है. दरअसल, अम्हारिक भाषा में इस शहर का नाम ‘नया फूल’ होता है. 

Advertisement