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क्या बच्चे अकेले पड़ रहे हैं? 40% टीन्स अब असली दोस्तों की जगह AI से ले रहे हैं सलाह

नए रिपोर्ट ‘Generation Isolation 2025’ में पता चला है कि 11 से 18 साल के लगभग 5000 बच्चों में से दो में से एक अब AI चैटबॉट्स जैसे ChatGPT और Gemini से सलाह ले रहे हैं.

By: Renu chouhan | Published: November 25, 2025 7:01:40 PM IST



आज की डिजिटल दुनिया में बच्चे सिर्फ पढ़ाई या जानकारी के लिए ही इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर रहे, बल्कि अब वे भावनाओं और सलाह के लिए भी AI का सहारा ले रहे हैं. नए रिपोर्ट ‘Generation Isolation 2025’ में पता चला है कि 11 से 18 साल के लगभग 5000 बच्चों में से दो में से एक अब AI चैटबॉट्स जैसे ChatGPT और Gemini से सलाह ले रहे हैं. यह संख्या दिखाती है कि टेक्नोलॉजी बच्चों की दिनचर्या का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी है.

AI अब सिर्फ टूल नहीं, एक ‘डिजिटल साथी’ बन चुका है
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बच्चे सिर्फ स्कूलवर्क के लिए ही AI का इस्तेमाल नहीं कर रहे, बल्कि वे इन चैटबॉट्स से भावनात्मक बातचीत भी कर रहे हैं. कई बच्चे बताते हैं कि वे AI से दोस्ती, तनाव, उदासी और परेशानियों पर बात करते हैं.

– 14% बच्चों ने कहा कि उन्होंने दोस्ती से जुड़ी सलाह के लिए AI का सहारा लिया.
– 11% ने मानसिक तनाव और भावनाओं पर बात की.
– 12% सिर्फ इसलिए AI से बात करते हैं क्योंकि उन्हें “किसी से बात करने का मन” होता है. यह दिखाता है कि AI अब बच्चों के लिए एक तरह का भावनात्मक सहारा बन चुका है.

AI से बात करना बच्चों को आसान लगता है
रिसर्च बताती है कि लगभग हर पांच में से एक बच्चा कहता है कि AI से बात करना इंसान से खुलकर बात करने से आसान लगता है. वजहें साफ हैं—

– बात करने में झिझक नहीं
– तुरंत जवाब
– किसी के जज करने का डर नहीं
– पूरी गुमनामी

भरोसा कम, निर्भरता ज़्यादा
यहां एक चौंकाने वाली बात यह है कि बच्चे AI पर सलाह तो ले रहे हैं, लेकिन बहुत कम बच्चे कहते हैं कि वे AI पर भरोसा करते हैं. इसका मतलब यह है कि वे AI को दोस्त की तरह इस्तेमाल तो कर रहे हैं, मगर असली रिश्तों पर उतना भरोसा नहीं कर पा रहे.

रिपोर्ट बताती है कि बच्चे स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने लगे हैं- 
– 76% बच्चे अपना खाली समय डिजिटल डिवाइसेज़ पर बिताते हैं.
– लगभग आधे बच्चे अपना समय अकेले अपने कमरे में बिताते हैं. इससे एक तरह की ‘डिजिटल दूरी’ बन रही है, जहां बच्चे वर्चुअल दुनिया में तो एक्टिव हैं लेकिन असली दुनिया से दूर होते जा रहे हैं.

असली दोस्तों की कमी से बढ़ रही है अकेलापन
रिपोर्ट का सबसे चिंताजनक हिस्सा यह है कि आज की युवा पीढ़ी में तीन में से एक बच्चा खुद को बहुत अकेला महसूस करता है. कई बच्चों को दोस्त बनाने में मुश्किल, खुद को अलग-थलग महसूस करना, सुरक्षित सामाजिक जगहें न मिलना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. यही वजह है कि वे AI को अपनी भावनाएँ बताना ज्यादा आसान समझते हैं.

लंबे समय में यह आदत चिंताजनक हो सकती है
विशेषज्ञों का मानना है कि AI से बात करना तुरंत राहत तो दे देता है, लेकिन लम्बे समय में यह बच्चों की भावनात्मक परिपक्वता को कमजोर कर सकता है. अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन भी चेतावनी देती है कि बच्चे अभी इतने परिपक्व नहीं होते कि वे समझ सकें कि AI से भावनात्मक सलाह लेना कितना जोखिम भरा हो सकता है. AI कभी भी इंसानों जैसी गर्माहट, समझ और भावनात्मक जुड़ाव नहीं दे सकता.

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