बिहार की राजनीति में इस बार जो तस्वीर उभरकर सामने आई है, वह कांग्रेस के लिए सिर्फ़ हार नहीं, बल्कि एक गहरी चेतावनी जैसी है. मतगणना के शुरुआती रुझानों ने साफ़ कर दिया कि जनता के मूड में भारी बदलाव आया है. जहां एनडीए आराम से आगे बढ़ रहा है, वहीं महागठबंधन और खासकर कांग्रेस अपने ही संघर्षों में उलझी दिखाई दे रही है. दशकों बाद वापसी की उम्मीदों के साथ मैदान में उतरी कांग्रेस को न सिर्फ़ सख्त चुनौती मिली, बल्कि कई सवाल भी उसके सामने खड़े हो गए हैं: क्या रणनीति गलत थी? क्या गठबंधन की अंदरूनी कलह ने नुकसान किया? या फिर जनता ने उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया?
बिहार में मतगणना के साथ ही चुनाव नतीजों की तस्वीर और साफ़ होती जा रही है. एनडीए भारी जीत की ओर बढ़ रहा है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 90 सीटें, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को 79, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 21, राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोम) को 4 और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को 4 सीटें मिलने का अनुमान है. इसका मतलब है कि एनडीए को लगभग 197 सीटें मिलने की संभावना है. दूसरी ओर, महागठबंधन की करारी हार की संभावना है. इस विपक्षी गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को 31 सीटें, कांग्रेस को पाँच, भाकपा-माले को चार और माकपा को एक सीट मिलने की उम्मीद है. रुझानों से पता चलता है कि महागठबंधन लगभग 40 सीटों पर सिमट सकता है.
महागठबंधन दलों में आपस में ही लड़ाई
इस बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना खोया हुआ दबदबा वापस पाने के लिए संघर्ष किया, लेकिन नतीजों ने उसे पिछले चुनाव से भी पीछे धकेल दिया है. महागठबंधन में पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस को नौ सीटें कम मिली. जो सीटें मिली, उनके लिए भी मुकाबला कड़ा था. कांग्रेस को पिछले चुनाव में 70 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार उसे केवल 61 सीटें मिलीं. इन 61 सीटों में से नौ पर महागठबंधन के सहयोगी राजद, भाकपा और वीआईपी ने चुनाव लड़ा था, यानी एक दोस्ताना मुकाबला हुआ.
कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि जिन 52 सीटों पर उसने अपनी उम्मीदें लगाई थीं, उनमें से 23 ऐसी सीटें थीं जिन पर महागठबंधन पिछले सात चुनावों में कभी नहीं जीत पाया था. शेष 29 विधानसभा सीटों में से 15 ऐसी सीटें थीं जिन पर महागठबंधन पिछले सात चुनावों में केवल एक बार ही जीत पाया था. ऐसे में, कांग्रेस चुनावों में कैसा प्रदर्शन कर पाती?
महागठबंधन के भीतर इस अंदरूनी कलह का फायदा सत्तारूढ़ दल को ही होना था. भाजपा को हराने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े करने वाले विपक्षी दलों को अपनी ही सीटें गंवानी पड़ीं. भाजपा को हराने के बजाय, वे खुद ही हार गए.
कांग्रेस 10 प्रतिशत वोट शेयर भी हासिल नहीं कर पाई.
यह चौथा विधानसभा चुनाव है जिसमें कांग्रेस 10 प्रतिशत वोट भी हासिल नहीं कर पाई है. किसी भी राज्य में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए 10 प्रतिशत वोट शेयर बेहद अहम होता है.
बिहार की राजनीति में कांग्रेस हाशिए पर
कांग्रेस ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत पाई. उसका स्ट्राइक रेट 27.14 प्रतिशत और वोट शेयर 9.48 प्रतिशत रहा.. इससे पहले, 2015 में, कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा थी. तब भी, उसे केवल 6.66 प्रतिशत वोट शेयर ही मिला था. 2010 का चुनाव और भी बुरा रहा। पार्टी ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल चार सीटें जीतीं. उसका स्ट्राइक रेट 1.65 प्रतिशत और वोट शेयर 8.37 प्रतिशत रहा.