Tehran water crisis 2025: तेहरान जो ईरान की राजधानी है और सदियों पुराना शहर भी है. जिसमें एक करोड़ से अधिक लोग रहते हैं, आज इतिहास के सबसे बड़े पानी संकट का सामना कर रहा है. सरकारी अधिकारी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर बारिश न हुई तो पानी की राशनिंग लगानी पड़ेगी और यदि सूखा दिसंबर तक बना रहा तो पूरे शहर को खाली कराना पड़ सकता है.
महीनों से बारिश नहीं हुई
अमीर कबीर बांध में बचे पानी की मात्रा पिछले साल की तुलना में महज छठा हिस्सा रह गई है. देश के आधे से ज्यादा हिस्सों में महीनों से बारिश नहीं हुई. सरकार रात में नल बंद करने की योजना बना रही है ताकि जलाशय कुछ हद तक भर सकें, लेकिन कई बांध पहले ही सूख चुके हैं. एक अधिकारी ने खुलकर कहा कि कुछ ही हफ्तों में पीने का पानी भी खत्म हो सकता है. राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन ने साफ कहा है किअगर नवंबर के अंत तक बारिश न आई तो पानी बांटना ही पड़ेगा और अगर सूखा दिसंबर तक चला तो तेहरान छोड़ना के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. यह डरावना सुनाई देता है पर यही असली हालत है.
जलवायु परिवर्तन का क्या कारण है?
कई लोग जलवायु परिवर्तन को इस सूखे का मुख्य कारण बता रहे है और वाकई मौसम तो बदल रहा है. भीषण गर्मी की लहरें, तापमान 50°C के पार जाना और वर्षा में भारी कमी. पर यह पूरी कहानी नहीं है, असली आपदा मानवीय योजनाओं और गलतियों का नतीजा है, जो दशकों से जमा हुई हैं.
ईरान में कुल पानी का लगभग 90% से अधिक कृषि में जाता है
ईरान में कुल पानी का लगभग 90% से अधिक कृषि में जाता है. पर खेती के पैटर्न पुराने और नीतियां अनुकूल नहीं रहीं हैं, किसान पानी ज्यादा मांगने वाली फसलों जैसे चावल और गेहूं की बुवाई करते रहे. नदियां सूख रही हैं, पहले स्थिर बहने वाली नदियां अब केवल मौसमी धारा बन गई हैं. अनगिनत दलदल सूख गए और बांधों ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बदल दिया. जमीन के नीचे जमा पानी (भूजल) को कुओं और ट्यूबवेल से इतनी तेज़ी से निकाला गया कि वह फिर से भर नहीं पा रहा. साथ ही शहरीकरण तेज हुआ,इमारतें बढ़ीं और आबादी बढ़ी पर पानी की योजनाएं उसी गति से नहीं बदलीं और मांग दोगुनी हुई और आपूर्ति नहीं.
समस्याओं को नजरअंदाज किया गया
सरकार ने सालों तक इन समस्याओं को अनदेखा किया लेकिन बांध तो बनते रहे पर दीर्घकालीन योजनाएं नहीं बनाईं. जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को नजरअंदाज किया गया और कृषि व बुनियादी ढांचे की नीतियां गलत रहीं, विशेषज्ञ इसे आत्मघाती प्रबंधन कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने आग लगा दी लेकिन इंसानी गलतियों ने ईंधन जोड़ दिया.
पड़ोसी देश
अब ईरान मदद के लिए पड़ोसी देशों में अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान से पानी मांग रहा है. यह कोई राजनयिक खेल नहीं यही मजबूरी है. तेहरान में पहले से कुछ इलाकों में पानी कट रहा है और रात में नल बंद करने जैसी आपात योजनाएं लागू की जा रही हैं. पर अगर बारिश नहीं हुई तो ये कदम पर्याप्त साबित नहीं होंगे.
प्यास एक अलग किस्म की चुनौती है
इतिहास ने तेहरान को कई तरह की बाज़ारिक लड़ाइयां, तख्तापलट और कड़ी प्रतिसब्धाओं के बीच खड़ा देखा है पर प्यास एक अलग किस्म की चुनौती है. पानी बचाने के अभियान आधुनिक सिंचाई तकनीकें, फसल पैटर्न में बदलाव और दीर्घकालिक नीति सुधार बेहद जरुरी है.
समाधान मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं है
समाधान मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं है. जल-संरक्षण, बेहतर कृषि नीति, भूजल पुनर्भरण, शहरों में टिकाऊ जल प्रबंधन और नई तकनीकों को अपनाना निहायत जरूरी है. लेकिन यह तभी संभव होगा जब सरकारी इच्छाशक्ति वैज्ञानिक मार्गदर्शन और जनता की भागीदारी साथ आए. तेहरान का भविष्य अभी भी लिखे जाने वाला है पर वक्त तेजी से निकल रहा है. अगर नीतियां और व्यवहार नहीं बदले गए तो केवल इतिहास की किताबों में नहीं, लोगों की रोजमर्रा जिन्दगी में भी इसका भारी असर नजर आएगा.