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Care Health Insurance : Blood Cancer मरीज पर 35 लाख का क्लेम, फिर भी बीमा कंपनी ने दिया धोखा

Care Health Insurance Fraud : केयर हेल्थ इंश्योरेंस ने 1 करोड़ की पॉलिसी होने के बावजूद ब्लड कैंसर मरीज का 35 लाख का कैशलेस क्लेम ठुकराया. जानिए कैसे बीमा कंपनियां जरूरत के वक्त कस्टमरों को निराश करती हैं.

By: sanskritij jaipuria | Last Updated: November 6, 2025 11:42:33 AM IST



Care Health Insurance Fraud : आजकल हेल्थ इंश्योरेंस हर किसी के लिए जरूरी हो गया है, ताकि अचानक आने वाले बड़े मेडिकल खर्चों से राहत मिल सके. लेकिन जब बीमा कंपनी खुद अपने वादों पर खरी न उतरे, तो मरीज और परिवार पर दोहरी मार पड़ती है. हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां केयर हेल्थ इंश्योरेंस ने ब्लड कैंसर से जूझ रहे एक मरीज का 35 लाख रुपये का कैशलेस क्लेम ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि लायबिलिटी इस समय तय नहीं की जा सकती, कृपया रीइम्बर्समेंट के लिए क्लेम करें.

 1 करोड़ की पॉलिसी, फिर भी मदद नहीं

मरीज के पास केयर हेल्थ इंश्योरेंस की पॉलिसी थी, जिसमें 1 करोड़ रुपये से ज्यादा का कवरेज शामिल था. फिर भी कंपनी ने ये कहते हुए कैशलेस इलाज की अनुमति नहीं दी कि वे इस समय खर्च का अनुमान नहीं लगा सकते. सवाल ये उठता है कि अगर एक टॉप नेटवर्क अस्पताल जैसे मुंबई का कोकिलाबेन अस्पताल में इलाज हो रहा है और डॉक्टर ने साफ कहा है कि इलाज के लिए कितनी रकम लगेगी, तो कंपनी कैसे कह सकती है कि खर्च तय नहीं किया जा सकता?

पहले छोटे क्लेम मंजूर, बड़ा क्लेम आया तो परेशानी

जानकारी के अनुसार, इससे पहले भी कंपनी ने उसी अस्पताल से कुछ क्लेम मंजूर किए थे, हालांकि उनमें कुछ कटौती की गई थी. लेकिन जब ये बड़ा क्लेम आया, तब कंपनी ने सीधे कैशलेस इलाज से इनकार कर दिया. इससे मरीज और परिवार को न सिर्फ आर्थिक, बल्कि मानसिक तनाव भी झेलना पड़ा.

 ‘रीइम्बर्समेंट’ का मतलब क्या?

कंपनी ने कहा कि मरीज पहले खुद इलाज का पूरा खर्च उठाए, फिर बाद में दस्तावेज जमा कर रीइम्बर्समेंट का दावा करे. लेकिन हर कोई 35 लाख रुपये तुरंत नहीं जुटा सकता. अगर किसी के पास कैशलेस सुविधा वाला इंश्योरेंस है, तो उसका मकसद ही यही होता है कि अस्पताल के खर्च सीधे कंपनी दे, मरीज नहीं.

इस घटना से एक बात साफ होती है कि सिर्फ सस्ती पॉलिसी लेने से काम नहीं चलता. बीमा कंपनी का भरोसेमंद होना ज्यादा जरूरी है. केयर हेल्थ इंश्योरेंस जैसी कंपनियां कम प्रीमियम के नाम पर कस्टमरों को आकर्षित तो कर लेती हैं, लेकिन जब असली जरूरत पड़ती है, तो मदद करने में पीछे हट जाती हैं.

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