Ramdarash Mishra: 20वीं सदी के महान साहित्यकारों में से एक रामदरश मिश्र का शुक्रवार (31 अक्टूबर, 2025) की शाम को दिल्ली में निधन हो गया. मूलरूप से यूपी के गोरखपुर के रहने वाले रामदरश मिश्र ने पुत्र शशांक मिश्र के द्वारका स्थित आवास पर अंतिम सांस ली. साहित्यकार के परिवार में पुत्र शशांक मिश्र, बहू रीता मिश्र और बेटी अंजलि तिवारी हैं. उनके निधन से साहित्य जगत शोक में हैं. उनसे पढ़े हुए साहित्य के हजारों विद्यार्थी उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं. उन्होंने इस वर्ष (2025) अगस्त महीने में जीवन के 101 वर्ष पूरे किए थे. उन्होंने लंबे समय तक साहित्य सृजन किया.
मंगलापुरी में हुआ अंतिम संस्कार
पुत्र शशांक मिश्र द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार की शाम को प्रो.रामदरश मिश्र अपनी शताब्दी यात्रा संपन्न कर अनंत यात्रा पर चले गए. उनका अंतिम संस्कार मंगला पुरी, (पालम) श्मशान घाट पर शनिवार सुबह 11 बजे किया गया. इस मौके पर दिल्ली विश्वविद्यायल से जुड़े शिक्षकों के अलावा बड़ी संख्या में साहित्यकार और छात्र भी मौजूद रहे.
लिखीं 150 से अधिक पुस्तकें
101 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले प्रो. रामदरश मिश्र ने जीवनभर साहित्य का सृजन किया. अपनी साहित्यिक यात्रा में उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं. उन्होंने साहित्य की अलग-अलग विधा में रचनाएं लिखीं. लेखक की खूबी यही है कि उनके उपन्यास, यात्रा वृतांत, कविताएं और निबंध बहुत पसंद किए गए. ‘जल टूटता हुआ’ और ‘पानी के प्राचीर’ उनके सर्वाधिक चर्चित उपन्यास हैं. इसके अलावा ‘बैरंग-बेनाम चिट्ठियां’, ‘पक गई है धूप’ और ‘कंधे पर सूरज’ उनकी अन्य प्रमुख साहित्यिक कृतिया हैं. रामदरश मिश्र ने वर्ष 2024 तक 150 से अधिक किताबें लिखीं. उनकी पुस्तकों को कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है. उनकी कृतियों में सहचर है समय (आत्मकथा), आते-जाते दिन, विश्वास जिंदा है (डायरी), पथ के गीत, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया और बाजार को निकले हैं लोग (कविता), पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर (उपन्यास) और खाली घर, दिनचर्या, सर्पदंश, बसंत का एक दिन (कहानी) भी शामिल है.
कविताओं ने पाठकों के मन पर किया गहरा असर
‘कुछ फूल कुछ कांटे हमने आपस में बांटें, जिंदगी के हर एक मोड़ पर एक-दूसरे का इंतजार किया है. जी हां हमने प्यार किया है’ और उनकी सर्वाधिक चर्चित कविता ‘जहां आप पहुंचे छ्लांगे लगाकर, वहां मैं भी आया मगर धीरे-धीरे’ कविता में ‘न हंस कर, न रोकर किसी में उडे़ला, पिया खुद ही अपना जहर धीरे-धीरे. गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया, गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे.’ इन दो कविताओं के जरिये आप जान सकते हैं कि लेखक किस कद के साहित्यकार थे. बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि उन्हें हिंदी और भोजपुरी साहित्य में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता था.
गुजरात में 8 वर्ष तक किया अध्यापन
15 अगस्त 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में जन्में रामदरश मिश्र ने कविता, कहानी, निबंध और आलोचना समेत सभी विधा में खूब लिखा. आलोचकों की मानें तो उन्हें हिंदी साहित्य में उनके योगदान को हिंदी आलोचना के स्तंभ के रूप में जाना जाता है. शुरुआती शिक्षा गोरखपुर के डुमरी गांव में हुई. इसके बाद रामदरश मिश्र ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की. बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि रामदरश मिश्र ने गुजरात में 8 वर्ष तक बतौर शिक्षक कार्य किया. उन्होंने खुद एक साक्षात्कार में माना है कि गुजरात में उन्हें बहुत स्नेह और आदर मिला. गुजरात के बाद वह दिल्ली आए और दिल्ली के ही होकर रह गए. लंबे समय तक वह पश्चिमी दिल्ली में रहें.
पुरस्कार और सम्मान
महान लेखक रामदरश मिश्र को उनके साहित्य जगत में अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया. इसके अलावा भी उन्हें कई सम्मान मिले. रामदरश मिश्र को 2021 में उनके कविता संग्रह ‘मैं तो यहां हूं’ के लिए सरस्वती सम्मान प्रदान किया गया. इसके बाद वर्ष 2025 में पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया. सम्मान और पुरस्कार की कड़ी में साहित्य अकादमी पुरस्कार (2015 में कविता संग्रह ‘अग्नि की हंसी’ के लिए) दिया गया, जबकि व्यास सम्मान (हिंदी कविता में आजीवन योगदान के लिए) भी मिला.
सरस्वती सम्मान (2021): कविता संग्रह ‘मैं तो यहां हूं’ के लिए.
पद्म श्री (2025): साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार.
साहित्य अकादमी पुरस्कार (2015): कविता संग्रह ‘अग्नि की हंसी’ के लिए.
व्यास सम्मान: हिंदी कविता में उनके आजीवन योगदान के लिए.