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रेवाड़ी पुलिस की ‘सिर मुंडवाकर जुलूस’ कार्रवाई पर हाईकोर्ट सख्त, DGP-IG को नोटिस, सरकार से जवाब तलब

Haryana news: हाईकोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी, रेवाड़ी रेंज के आईजी और संबंधित पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है.

By: Shubahm Srivastava | Published: November 1, 2025 12:13:51 AM IST



Rewari Police Shaving Heads: हरियाणा के रेवाड़ी जिले में पुलिस द्वारा आरोपियों के सिर मुंडवाकर जुलूस निकालना महंगा पड़ गया है. असल में अब ये मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गया है. इस घटना को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका में राज्य पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.

याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी, रेवाड़ी रेंज के आईजी और संबंधित पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. अदालत ने राज्य सरकार से 2 दिसंबर तक विस्तृत जवाब मांगा है.

आरोपियों का सिर मुंडवाया, बाजारों में निकाला जुलूस

यह मामला तब सामने आया जब रेवाड़ी पुलिस ने एक आपराधिक मामले में चार आरोपियों को पकड़ने के बाद उनका सिर जबरन मुंडवाया, हथकड़ी लगाई और उन्हें शहर के बाजारों में जुलूस के रूप में घुमाया. इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, जिसके बाद पुलिस की कार्रवाई को लेकर व्यापक आलोचना हुई.

पुलिस की ये हरकत अमानवीय-असंवैधानिक – याचिकाकर्ता

याचिकाकर्ता विनीत कुमार जाखड़ ने इसे “अमानवीय, असंवैधानिक और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन” बताया है. याचिका में कहा गया है कि पुलिस की यह हरकत संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.

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इन फैसलों का दिया हवाला 

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों — सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन और शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन — का हवाला दिया गया है. इन फैसलों में स्पष्ट किया गया था कि बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति किसी आरोपी को हथकड़ी लगाना गैरकानूनी है. जाखड़ ने कोर्ट को बताया कि रेवाड़ी पुलिस ने न केवल इस नियम का उल्लंघन किया, बल्कि आरोपियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित कर संवैधानिक सीमाओं का भी अतिक्रमण किया.

हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट और जवाब मांगा है. अदालत ने कहा कि पुलिस को कानून के दायरे में रहते हुए ही कार्रवाई करनी चाहिए और न्यायिक प्रक्रिया को सार्वजनिक अपमान के मंच में नहीं बदलना चाहिए.

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