Home > देश > नहीं होता भारत-पाक का बंटवारा! अगर Sardar Vallabhbhai Patel बनते पहले प्रधानमंत्री? गांधी के खास दोस्त होने के बावजूद क्यों नहीं बन पाए PM

नहीं होता भारत-पाक का बंटवारा! अगर Sardar Vallabhbhai Patel बनते पहले प्रधानमंत्री? गांधी के खास दोस्त होने के बावजूद क्यों नहीं बन पाए PM

Sardar Vallabhabhai Patel History: अगर महात्मा गांधी ने कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप न किया होता, तो सरदार वल्लभभाई पटेल पहली स्वतंत्र भारतीय सरकार के अंतरिम प्रधानमंत्री होते. जी हां, स्वतंत्रता के समय पटेल 71 साल के थे, जबकि नेहरू सिर्फ 56 वर्ष के थे.

By: Heena Khan | Published: October 31, 2025 9:58:32 AM IST



Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: Sardar Vallabhbhai Patel! ये वो नाम है जिन्होंने भारत को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया, वहीं हर साल 31 अक्टूबर को उनकी जयंती भी मनाई जाती है. वहीं अगर महात्मा गांधी ने कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप न किया होता, तो सरदार वल्लभभाई पटेल पहली स्वतंत्र भारतीय सरकार के अंतरिम प्रधानमंत्री होते. जी हां, स्वतंत्रता के समय पटेल 71 साल के थे, जबकि नेहरू सिर्फ 56 वर्ष के थे. ये वो समय था जब अंग्रेज भारत से सब कुछ लूटकर ले जा चुके थे. इस दौरान देश एक बहुत ही नाजुक दौर से गुज़र रहा था.

जिन्ना को आसानी से मना लेते सरदार पटेल अगर… 

ये वो समय था जब जिन्ना पाकिस्तान पर अड़े हुए थे. इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. एक तरफ कांग्रेस चाहती थी कि पटेल देश का नेतृत्व करें क्योंकि वो जिन्ना से बेहतर बातचीत कर सकते थे, लेकिन गांधी जी के एक फैसले ने सब कुछ बदल कर रख दिया. इस दौरान गांधी जी ने सरदार पटेल को ना चुनकर नेहरू को चुना. राजेंद्र प्रसाद जैसे कुछ कांग्रेसी नेताओं ने खुलेआम घोषणा की कि “गांधीजी ने ग्लैमरस नेहरू के लिए अपने भरोसेमंद साथी का बलिदान दिया, लेकिन ज़्यादातर कांग्रेसी चुप रहे. चलिए जान लेते हैं कि बापू ने देश की बागडोर नेहरू को सौंपने के लिए उन्हें ही क्यों चुना?

गांधी से पटेल का खास कनेक्शन 

गांधी की मुलाकात नेहरू से पहले वल्लभभाई पटेल से हुई थी. उनके पिता झावेरभाई ने 1857 के विद्रोह में भाग लिया था. वे तीन साल तक घर से दूर रहे.गांधी का जन्म 1857 के विद्रोह के 12 साल बाद और पटेल का जन्म 18 साल बाद, 31 अक्टूबर, 1875 को हुआ था. पटेल गांधी से केवल छह साल छोटे थे, जबकि नेहरू उनसे 14-15 साल छोटे थे. छह साल की उम्र का अंतर ज़्यादा नहीं है, इसलिए गांधी और पटेल के बीच दोस्ती थी. पटेल मिडिल टेम्पल से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे, यह लंदन का वही लॉ कॉलेज था जहाँ से गांधी, जिन्ना, उनके बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल और नेहरू ने अपनी डिग्री हासिल की थी.

सरदार पटेल को बापू ने क्यों नहीं बनाया PM

तब के जाने-माने पत्रकार दुर्गादास ने अपनी किताब ‘इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू’ में इस बात का जवाब दिया है कि इतने विरोधों के बावजूद गांधी ने पटेल की जगह नेहरू को क्यों चुना? जैसे कि गांधी ने कहा था कि उनके पास इसकी कई वजहें हैं लेकिन वो वजहें न किसी ने उनसे पूछी न उन्होंने किसी को बताईं. इतना ही नहीं उस दौरान कांग्रेस में तो किसी में हिम्मत नहीं थी कि कोई बापू से ये सवाल करे कि सरदार पटेल जैसे योग्य नेता को छोड़कर आपने नेहरू को ही क्यों प्रधानमंत्री बनाया. 

गांधी क्लियर की पूरी बात 

हर कोई इस बात से वाकिफ था कि पटेल ज़मीनी स्तर पर मज़बूत पकड़ रखते थे. वो जिन्ना जैसे लोगों से उनकी ही भाषा में बातचीत कर सकते थे. और कही न कही आज पाक भारत का हिस्सा हो सकता था. जब पत्रकार दुर्गादास ने उनसे यह सवाल पूछा, तो गांधीजी ने स्वीकार किया कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पटेल एक बेहतर वार्ताकार और संगठनकर्ता हो सकते थे, लेकिन उनका मानना ​​था कि सरकार का नेतृत्व नेहरू से अच्छा कोई नहीं कर सकता था. इस दौरान जब दुर्गादास ने गांधीजी से पूछा कि उन्हें पटेल में ये गुण क्यों नहीं दिखते, तो गांधीजी हंस पड़े और बोले, “हमारे खेमे में जवाहर ही एकमात्र अंग्रेज़ हैं.”

यह भाँपते हुए कि दुर्गादास उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, गांधीजी ने कहा, “जवाहर कभी भी दूसरे स्थान पर आने को तैयार नहीं होंगे. वे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को पटेल से बेहतर समझते हैं. वे इसमें अच्छी भूमिका निभा सकते हैं. ये दोनों सरकार की बैलगाड़ी खींचने वाले दो बैलों की तरह हैं. नेहरू अंतरराष्ट्रीय मामलों के लिए होंगे और पटेल राष्ट्रीय मामलों के लिए. दोनों ही बैलगाड़ी को अच्छी तरह से खींचेंगे.”

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