PLA Kill Web Technology : अमेरिकी वायुसेना ने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की मिसाइल क्षमताओं और उसकी ‘किल वेब’ तकनीक के विकास को लेकर चिंता जाहिर की है। इसके बाद अमेरिकी रक्षा विभाग के आगामी बजट अनुरोध में चीन से बढ़ते खतरे के कारण इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है।
अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि ताइवान पर चीन का पूर्ण पैमाने पर हमला जोखिम भरा और असंभव दोनों है। जिससे पता चलता है कि बीजिंग अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए राजनीतिक युद्ध या नाकाबंदी जैसे बलपूर्वक उपाय अपनाने की अधिक संभावना है।
क्या है किल वेब तकनीक?
अमेरिकी वायु सेना के सचिव ट्रॉय मींक और अंतरिक्ष संचालन के प्रमुख जनरल चांस साल्ट्ज़मैन ने ड्रैगन की किल वेब तकनीक को लेकर बड़ी चिंता जाहिर की है। इससे पीएलए अमेरिकी सेनाओं पर काफी दूर से नजर रखने में समर्थ हैं। साल्ट्ज़मैन ने आगे कहा कि चीन ने पहले ही 470 से अधिक खुफिया, निगरानी और टोही उपग्रहों को तैनात किया है, जो एक आधुनिक सेंसर-टू-शूटर किल वेब में जानकारी का योगदान करते हैं।
इसके अलावा इसका किल वेब सेंसर को सीधे स्ट्राइक इकाइयों से जोड़ता है। डेटा शेयरिंग और ऑटोमेशन के जरिये से हमलों को तेज रफ्तार से अंजाम देता है। जिससे सेकंड के भीतर हमले किए जा सकते हैं।
ताइवान पर हमला करने के लिए चीन के पास मिसाइलों का भंडार!
चांस साल्ट्ज़मैन आगामी वर्ष के लिए रक्षा बजट पर चर्चा करने के लिए सीनेट उपसमिति की सुनवाई में, मींक और साल्ट्ज़मैन दोनों ने कहा कि पीएलए अपनी बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं को तेज़ी से विकसित कर रहा है। उन्होंने कहा कि चीन के पास ताइवान को निशाना बनाने वाली 900 से ज़्यादा छोटी दूरी की मिसाइलें हैं।
इसके अलावा 400 ज़मीनी मिसाइलें भी हैं। इसके अलावा, उन्होंने चीन के 1,300 किलोमीटर की रेंज वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के भंडार पर भी प्रकाश डाला। चीन की 500 किलोमीटर की रेंज वाली बैलिस्टिक मिसाइलें अलास्का और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों तक पहुँच सकती हैं और 400 से ज़्यादा अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें वैश्विक स्तर पर परमाणु पेलोड पहुँचाने में सक्षम हैं।
चीन की किल वेब तकनीक से क्यों डरा अमेरिका
चीन की किल वेब तकनीक सिर्फ़ मिसाइलों या ड्रोन का नेटवर्क नहीं है। यह युद्ध के मैदान में दुश्मन को पूरी तरह से घेरकर उसे नष्ट करने की नई तकनीक है। इसका उद्देश्य रडार, सेंसर, सैटेलाइट और मिसाइलों को आपस में जोड़कर ऐसा नेटवर्क तैयार करना है, जो पल भर में दुश्मन की किसी भी गतिविधि को पकड़ सके और खुद ही जवाबी कार्रवाई कर सके। अमेरिका को डर है कि यह सिस्टम उनके लड़ाकू विमानों और युद्धपोतों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
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