रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका की सैंक्शन नीति और लगातार बढ़ती आर्थिक दिक्कतों ने दुनिया के देशों को अपनी वित्तीय रणनीति पर फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है. इन बदलते हालातों में कई देश अब अपने गोल्ड रिजर्व (स्वर्ण भंडार) को तेजी से बढ़ा रहे हैं. हाल के अध्ययनों से पता चला है कि डॉलर पर निर्भरता कम करने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए दुनिया के कई केंद्रीय बैंक बड़ी मात्रा में सोना खरीद रहे हैं.
क्यों बढ़ रही है सोने की मांग?
रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों और उसके विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज करने के फैसले ने ये संदेश दिया कि अमेरिकी डॉलर को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. यही कारण है कि चीन, भारत, रूस और तुर्किये जैसे देश अब सोने को ज्यादा भरोसेमंद विकल्प के रूप में देख रहे हैं. पिछले छह महीनों में सोने की कीमतों में लगभग 65% तक की वृद्धि दर्ज की गई है, जो इस बढ़ती मांग को दर्शाती है.
वित्त विशेषज्ञों के अनुसार, सोना ऐसी संपत्ति है जिस पर डिफॉल्ट या प्रतिबंध का खतरा नहीं होता. जब दुनिया की बड़ी मुद्राओं जैसे डॉलर या यूरो पर भरोसा कम होता है, तो केंद्रीय बैंक सोने को सेफ इंवेस्टमेंट के रूप में प्राथमिकता देते हैं. इसीलिए संकट के समय सोने की ओर झुकाव हमेशा बढ़ता है.
डी-डॉलराइजेशन की दिशा में कदम
कई देशों के लिए गोल्ड रिजर्व बढ़ाना केवल निवेश नहीं, बल्कि रणनीतिक कदम है. इसका मेन उद्देश्य डॉलर पर निर्भरता घटाना है. इस नीति को डी-डॉलराइजेशन (De-dollarization) कहा जाता है. सोना न केवल वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि ये देशों को मौद्रिक स्वतंत्रता भी देता है– यानि वे अमेरिकी नीतियों से कम प्रभावित होते हैं.
रिकॉर्ड स्तर की खरीदारी की तैयारी
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 में दुनिया के केंद्रीय बैंक लगभग 900 टन सोना खरीद सकते हैं. यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब सोने की खरीद औसत से कहीं अधिक होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि इस आक्रामक खरीदारी के कारण सोने की कीमतें ऊंचाई पर बनी हुई हैं और निकट भविष्य में और बढ़ सकती हैं.
घटता डॉलर का दबदबा
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, अमेरिकी डॉलर अभी भी वैश्विक भंडार का लगभग 58% हिस्सा है, लेकिन यह हिस्सा लगातार घट रहा है. राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के कारण कई देश अब अमेरिकी संपत्तियों में निवेश करने से झिझक रहे हैं. इसके विपरीत, सोना एक सार्वभौमिक संपत्ति है, जिसे किसी एक देश की नीतियां कंट्रोल नहीं कर सकतीं यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है.
चीन की आक्रामक सोना रणनीति
इस वैश्विक बदलाव में चीन सबसे आगे है. पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने लगातार 18 महीनों तक अपने सोने के भंडार में वृद्धि की है. विशेषज्ञों के मुताबिक, ये कदम अमेरिका के संभावित प्रतिबंधों से बचाव और ब्रिक्स+ देशों के बीच गैर-डॉलर व्यापार को मजबूत करने की दिशा में है.
चीन की ये नीति आने वाले समय में सोने की कीमतों को और ऊंचा बनाए रख सकती है और वैश्विक आर्थिक समीकरणों को नया रूप दे सकती है.