Female Lawyer Mistreated: उत्तर प्रदेश के नोएडा से बेहद ही चौंकाने वाला मामला सामने आया है. जहां, नोएडा पुलिस की वर्दी शर्मसार हो गई. नोएडा पुलिस पर एक महिला वकील के साथ अमानवीय व्यवहार और अवैध हिरासत के गंभीर आरोप लगे हैं. इस मामले में सुप्रील कोर्ट ने अब दखल अंदाजी की है. आखिर क्या है पूरा मामला जानने के लिए पूरी खबर पढ़िए.
क्या है पूरी घटना और गंभीर आरोप?
पीड़ित महिला वकील के मुताबिक, यह घटना 3 दिसंबर की रात की है. जब वह अपने एक घायल क्लाइंट के लिए FIR दर्ज कराने नोएडा सेक्टर-126 थाने गई थीं. इसके बाद पीड़ित महिला वकील ने मामले में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वहां उन्हें मदद की बिजाय 14 घंटे तक अवैध हिरासत में रखा गया था.
इतना ही नहीं उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाते हुए लिखा कि थाने के SHO और अन्य पुरुष पुलिसकर्मियों ने उनके साथ यौन उत्पीड़न के साथ-साथ शारीरिक दुराचार करने का प्रयास किया. इसके बाद भी पुलिस ने उन्हें धमकाने की पूरी कोशिश की. हद तो तब पार हो गई जब पुलिस ने उनकी गर्दनम पर पिस्टल रखी और मोबाइल का पासवर्ड मांगा, जिसके बाद उनके मोबाइल से महत्वपूर्ण वीडियो के साक्ष्य को पूरी तरह से मिटा दिया गया.
वकील के साक्ष्यों के साथ किया गया छेड़छाड़
इतना ही नहीं, पीड़ित महिला वकील ने आगे दावा करते हुए बताया कि इस पूरी घटना के दौरान पुलिस ने सोची-समझी साजिश के तहत CCTV कैमरे को भी बंद कर दिए थे ताकि किसी भी तरह का कोई सबूत न रह सके. हालाँकि, याचिका में इसे न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन, बल्कि कानून के शासन का अपमान भी बताया जा रहा है.
घटनाक्रम को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
इस पूरी घटनाक्रम को लेकर सुप्रीम कोर्ट का भी सख्त रुख देखने को मिला है. जहां, मामले को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर ऐसी याचिकाएं सीधे स्वीकार नहीं की जाती हैं, लेकिन CCTV कैमरों के बंद होने और हिरासत में हिंसा के दावों के साक्ष्य बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के क्या है मुख्य निर्देश?
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा पुलिस कमिश्नर को सख्त निर्देश दिया गया है कि उस समय की CCTV फुटेज को सीलबंद और सुरक्षित रखा जाए. इसके साथ ही इस फुटेज को 7 जनवरी 2026 तक अदालत के सामने पेश करने की भा तारीख तय की गई है. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को किसी भी सबूत के साथ छेड़छाड़ नहीं करने के भी सख्त निर्देश दिए हैं.
फिलहाल क्या है घटनाक्रम की वर्तमान स्थिति?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी इस मामले को ‘कस्टोडियल वायलेंस‘ (हिरासत में हिंसा) की श्रेणी में दर्ज किया है. तो वहीं, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश में पुलिस आरोपियों को बचाने की पूरी तरह से कोशिश कर रही है और फिलहाल इस मामले में अभी तक किसी भी तरह की उचित FIR दर्ज नहीं की गई है.
हालाँकि, यह मामला पुलिस प्रशासन की जवाबदेही और थानों में CCTV कैमरों की अनिवार्यता पर बड़े सवाल खड़े करता है. तो वहीं, 7 जनवरी को होने वाली सुनवाई इस मामले में निर्णायक साबित हो सकती है.