अली खान की रिपोर्ट, Fraud Police Station, Noida, UP: नोएडा के सेक्टर-70 में इंटरनेशनल पुलिस एंड क्राइम इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो के नाम से फर्जी थाना खोलकर ठगी करने वाले गैंग का पर्दाफाश हुआ है। इस मामले में गिरफ्तार आरोपियों से पुलिस कस्टडी रिमांड के दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। पकड़े गए आरोपियों में विभाष चंद्र अधिकारी, अराग्य अधिकारी और बाबूल चंद मंडल शामिल हैं।
वीडियो कॉल और ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पीड़ितों को जोड़ा गया
सेंट्रल नोएडा की डीपीपी शक्ति मोहन अवस्थी ने बताया कि यह गैंग न केवल आम लोगों को बल्कि एनआरआई और ओसीआई कार्डधारकों को भी शिकार बना रहा था। पीड़ितों को वीडियो कॉल और ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जोड़ा जाता और उन्हें सरकारी एजेंसियों का अधिकारी बनकर झांसा दिया जाता।
फर्जी आदेशों का इस्तेमाल
पूछताछ में पता चला कि गिरोह नकली कॉल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, जाली सरकारी दस्तावेज, स्पूफिंग तकनीक, हवाला नेटवर्क, नकली सीबीआई और आरबीआई लेटरहेड तथा सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेशों का इस्तेमाल करता था। पूरे ऑपरेशन का मास्टरमाइंड विभाष चंद्र अधिकारी था, जिसने थाना जैसी दिखने वाली ऑफिस तैयार की थी और उसी से गैंग का संचालन करता था। गिरोह पीड़ितों को यह डर दिखाता कि अगर वे जांच में सहयोग नहीं करेंगे तो उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं मिलेगी और भविष्य में ओसीआई कार्ड भी रद्द हो जाएगा। इसी भय का फायदा उठाकर उनसे धन की मांग की जाती। भरोसा दिलाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट टीम पर वीडियो कॉल कर क्राइम ब्रांच, सीबीआई, ईडी और सुप्रीम कोर्ट के नकली दस्तावेज दिखाए जाते।
सीबीआई सुपरविजन अकाउंट में धनराशि करानी होगी जमा
जब कोई पीड़ित अपनी बेगुनाही की बात करता तो उसे भारत सरकार से पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (PCC) दिलाने का झांसा दिया जाता। गैंग कहता कि इसके लिए सीबीआई सुपरविजन अकाउंट में धनराशि जमा करानी होगी ताकि मनी ट्रेल ट्रैक हो सके और बेगुनाही साबित की जा सके। राशि भेजने के बाद पीड़ितों को एक Acknowledgement Letter जारी किया जाता, जिस पर “Financial Department, CBI” और आरबीआई की नकली सील लगी होती।
अंतरराष्ट्रीय खातों में ट्रांसफर और बाद में हवाला नेटवर्क के जरिए वापस
ठगी से प्राप्त धनराशि को गिरोह पहले अंतरराष्ट्रीय खातों में ट्रांसफर करता और बाद में हवाला नेटवर्क के जरिए वापस भारत लाता था। इतना ही नहीं, नेशनल ब्यूरो ऑफ सोशल इन्वेस्टिगेशन एंड सोशल जस्टिस के नाम से भी ऐसे सम्मन और आदेश जारी किए जाते थे जो बिल्कुल कानूनी दस्तावेज जैसे दिखते थे। इनका मकसद सिर्फ लोगों पर दबाव बनाना और ठगी की रकम निकलवाना था। पूरी पूछताछ से स्पष्ट है कि यह गैंग बेहद संगठित तरीके से काम करता था और बड़े पैमाने पर लोगों को ठगने के लिए नकली थाना और फर्जी संस्थाएं खड़ी कर चुका था।

