Three Parent Babies: माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी के आगमन ने विज्ञान की दुनिया में एक बड़ी छलांग लगाई है. यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें बच्चों के दो नहीं बल्कि तीन जैविक माता-पिता होते हैं. आइए कैसे काम करती है जानते है.
माइटोकॉन्ड्रिया जिसे अक्सर कोशिका का पावरहाउस कहा जाता है. प्रत्येक मानव कोशिका को ऊर्जा प्रदान करता है. अधिकांश डीएनए के विपरीत है. यह डीएनए विशेष रूप से मां से विरासत में मिलता है. जब दोष उत्पन्न होते हैं, तो इससे मधुमेह, बहरापन, यकृत की समस्याएं और गंभीर हृदय रोग हो सकते है. माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी इन विकार को बच्चों में जाने से रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है.
कैसे करेगा काम?
इस प्रक्रिया में बच्चे का डीएनए तीन लोगों से प्राप्त होता है. मां जैविक पिता और एक स्वस्थ महिला दाता. माता और पिता अधिकांश आनुवंशिक सामग्री प्रदान करते हैं. जबकि दाता रोग की रोकथाम के लिए स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया प्रदान करता है. यह प्रक्रिया आईवीएफ के माध्यम से की जाती है. मां और दाता दोनों के अंडों को पिता के शुक्राणुओं से निषेचित किया जाता है. केन्द्रक जिसमें मां का अधिकांश आनुवंशिक पदार्थ होता है. उसके अण्डे से निकालकर उस दाता अण्डे में प्रविष्ट करा दिया जाता है जिसका केन्द्रक निकाल दिया गया है.
बिमारी से कैसे बचें?
भ्रूण के सफलतापूर्वक निर्मित होने के बाद उसे मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इससे मां बच्चे को पूर्ण अवधि तक गर्भ में रख पाती है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि बच्चा प्राकृतिक गर्भाशय वातावरण में विकसित हो और तीनों योगदानकर्ताओं के डीएनए का संयोजन उसमें समाहित हो. एमआरटी से जन्मे बच्चे में लगभग 99.8% भावी माता-पिता का डीएनए होता है. जिसमें केवल 0.1% दाता का डीएनए होता है. दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए वाली महिलाओं के लिए उपयोग की जाती है जो अपने बच्चों को बीमारियां देने से बचना चाहती है.