Kanwar Yatra 2025: सावन के महीने में की जाने वाली कांवड़ यात्रा का हिंदू धर्म में काफी महत्व है, यह एक प्राचीन हिंदू तीर्थयात्रा में से एक है। सावन में शिव भक्त बड़ी धूमधाम और श्रद्धा से कांवड़ यात्रा और यात्रा के दौरान शिवभक्ती मे मगन हो जाते हैं। भगवान शिव का जल अभिषेक करने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं। कहा जाता है कि जो कोई भी व्यक्ती पूरी श्रद्धा से कांवड़ यात्रा करता है, उस पर भोलेनाथ की विषेश कृपा होती है और भगवान कांवड़ियों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कांवड़ यात्रा सबसे पहले किसने शुरु की थी।
सबसे पहले किसने शुरु की थी कांवड़ यात्रा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम जी ने कांवड़ की लंबी यात्रा कर गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर बागपत में स्थित पुरा महादेव मंदिर में शिव का जल से अभिषेक किया था, जिससे भगवान शंकर उनसे बेहद प्रसन्न हुए थे।
भगवान राम ने की कांवड़ यात्रा की शुरूआत
वही कुछ मान्यताओं के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरूआत भगवान राम ने की थी। कहा जाता हैं कि श्री राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
सबसे पहले श्रवण कुमार ने की थी कांवड़ यात्रा
इसके अलावा कुछ विद्वानों का माना ये भी है कि कांवड़ यात्रा का प्रारंभ त्रेता युग में श्रवण कुमार ने किया था। श्रवण कुमार ने अपने माता पिता, जो की अंधे थे उन्हें कांवड़ में बैठाकर तीर्थयात्रा कराई थी और इसी सावन के महीने मे हरिद्वार में गंगा स्नान भी कराया था और अपने साथ गंगाजल भी लेकर आए थे.
रावण ने की थी कांवड़ यात्रा
कुछ पुरानी मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन करते दौरान जब विश निकला था तो भगवान शिव ने उसे पिया लिया था, जिसकी वजह से उनका गला पूरा निला हो गया था। तब भगवान शंकर के सबसे बड़े भक्त रावण ने कांवड़ में जल भरकर ‘पुरा महादेव’ पहुंचें और शिवजी का जलाभिषेक किया, जिसके बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
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