क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से नाराज होकर वैकुंठ छोड़ गई थीं? इसका कारण एक ऐसी घटना थी जिसमें विष्णु ने अपने महान स्वभाव के बावजूद अपनी पत्नी के सम्मान को ठेस पहुंचाई. यह कथा सिर्फ एक पुराणिक प्रसंग नहीं है, बल्कि इसमें छिपा संदेश बहुत गहरा है , यह हमें बताती है कि सम्मान, आत्मसम्मान और भावनाओं की कद्र हर रिश्ते में जरूरी है. चलिए जानते हैं वो कारण, जिनकी वजह से लक्ष्मी देवी ने भगवान विष्णु को दंडित किया और यह घटना इतिहास में क्यों विशेष बन गई.
बृहिगु ऋषि ने यह जानने के लिए कि त्रिदेवों में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं, पहले ब्रह्मा और फिर शिव से मुलाकात की. अंत में वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे, जो ध्यान में लीन थे. विष्णु ने तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे बृहिगु क्रोधित हुए और उन्होंने विष्णु के सीने पर ठोकर मार दी. विष्णु ने इसे अपमान नहीं समझा, बल्कि विनम्रता से ऋषि के चरणों को दबाया और क्षमा मांगी. यह देखकर देवी लक्ष्मी को गहरा दुख हुआ, क्योंकि उनका निवास स्थान वही हृदय था जिसे ठोकर मारी गई थी.
लक्ष्मी को लगा कि विष्णु ने अपनी गरिमा और उनके सम्मान की रक्षा नहीं की. वे सोचने लगीं कि जब एक ऋषि उनके निवास स्थान को अपवित्र करे और विष्णु चुप रहें, तो यह उनके आत्मसम्मान के खिलाफ है. क्रोध में उन्होंने कहा कि जहां उनका आदर नहीं होता, वहां वे नहीं रहेंगी. यह निर्णय उनके आत्म-सम्मान का प्रतीक था, जिसने आगे चलकर विष्णु के जीवन में बड़ा परिवर्तन लाया.
अपने निर्णय पर अडिग रहते हुए देवी लक्ष्मी ने वैकुंठ छोड़ दिया और पृथ्वी पर अवतरित हो गईं. कहा जाता है कि वे कोल्हापुर में स्थिर हुईं और वहां उनकी पूजा “महालक्ष्मी” के रूप में की जाने लगी. वैकुंठ से उनके जाने के बाद वहां शांति और समृद्धि का अभाव हो गया. यह घटना दर्शाती है कि जब जीवन से लक्ष्मी (समृद्धि) चली जाती है, तो शांति और सौभाग्य भी साथ नहीं रहते.
लक्ष्मी के जाने के बाद भगवान विष्णु को अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने समझा कि विनम्रता कभी-कभी कमजोरी लग सकती है, अगर वह अपने प्रियजनों के सम्मान को आहत करे. वे पृथ्वी पर आए और कठोर तपस्या करने लगे ताकि लक्ष्मी को वापस पा सकें. यह घटना दिखाती है कि सच्चा प्रेम कभी हार नहीं मानता, बल्कि गलती को सुधारने के लिए प्रयास करता है.