Sharad Purnima Katha: शरद पूर्णिमा को कई जगह कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस साल 6 अक्तूबर, सोमवार को शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है. इस दिन दीपावली की तरह ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं और वे इस दिन धरती पर भ्रमण करती हैं. शरद पूर्णिमा के दिन व्रत का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है. तो आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की कथा के बारे में.
शरद पूर्णिमा की व्रत कथा
शरद पूर्णिमा की कथा को ‘लड्डू वाली कथा’ भी कहते हैं, जो कि साहूकार की दो बेटियों की कहानी है. धार्मिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से आपके ऊपर लक्ष्मी नारायण की कृपा होती है. तो आइए जानते हैं कि इस कथा के बारे में विस्तार से.
शरद पूर्णिमा कथा लड्डू वाली
शरद पूर्णिमा पर एक प्रसिद्ध कथा पढ़ी जाती है. कथा ये है कि एक साहूकार की दो बेटियां थीं और दोनों ही पूर्णिमा का व्रत करती थीं. लेकिन बड़ी बेटी अपना व्रत पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करती थी. जबकि छोटी बेटी शाम को ही भोजन करके व्रत खोल लेती थी.
बड़ी बेटी को पूर्णिमा के व्रत के पुण्य प्रताप से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वहीं छोटी बेटी को संतान ही नहीं हुई, लेकिन वह दीर्घायु नहीं होती थी. उसकी संतान जन्म लेते ही मर जाती थी. एक बार जब छोटी बेटी अपने मृत पुत्र के शोक में बैठी थी, तब बड़ी बहन वहां आई. बड़ी बहन ने जैसे ही छोटी के मृत बेटे के वस्त्र को छुआ तो मृत पुत्र जीवित हो उठा और रोने लगा.
Karwa Chauth 2025: क्या गर्भवती महिलाएं करवा चौथ पर फलाहार खा सकती हैं? जानें यहां
दुखी होकर उसने एक संत से इसका कारण पूछा. संत ने बताया कि उसके व्रत अधूरे रहने की वजह से उसकी संतान मर जाती थी. तब छोटी बहन ने समझाया कि बड़ी बहन के साथ ये सब पूर्णिमा व्रत के कारण हुआ है. तब उसने पूरे विधि-विधान के साथ व्रत किया और फिर उसके फलस्वरूप उसे संतान की प्राप्ति हुई.
इस प्रकार, इस पूर्णिमा व्रत के महत्व और फल का काफी महत्व है. इस व्रत को करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर बनाई जाती है, जिसे चंद्रमा की रोशनी में रात भर रखा जाता है और अगले दिन ग्रहण किया जाता है. ऐसा करने से रोगियों को रोगों से मुक्ति मिलती है और आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है.
इस व्रत के बाद पूजा में कई तरह के लड्डुओं का भोग भी लगाया जाता है- एक लड्डू बाल गोपाल को, एक गर्भवती महिला को, एक सखी को, एक पति को, एक तुलसी मैया को और एक व्रत करने वाली महिलाएं खुद लेती हैं.