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Putrada Ekadashi 2025 Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी आज, जरूर पढ़ें यह व्रत कथा हर मनोकामना होगी पूर्ण

Putrada Ekadashi 2025: एकादशी का व्रत श्री हरि नारायण भगवान विष्णु जी को समर्पित व्रत है. इस दिन व्रत और पूजा पाठ करने से फल की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत की कथा को जरूर पढ़ें.

By: Tavishi Kalra | Published: December 30, 2025 6:42:06 AM IST



Putrada Ekadashi 2025 Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी का व्रत हर साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है. इस दिन निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं. आज यानि 30 दिसंबर 2025, मंगलवार को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है यहां पढ़ें इस व्रत की कथा.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

श्रीकृष्ण के चरणों में अर्जुन ने प्रणाम कर श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की – “हे मधुसूदन! अब आप पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के माहात्म्य का वर्णन करने की कृपा करें. इस एकादशी का क्या नाम हैं? इसका क्या विधान है? इस दिन किस देवता का पूजन किया जाता है? कृपा कर मेरे इन सभी प्रश्नों का विस्तारपूर्वक उत्तर दें.”

अर्जुन के प्रश्न पर श्रीकृष्ण ने कहा – “हे अर्जुन! पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है. इसका पूजन पूर्व में वर्णित विधि अनुसार ही करना चाहिये. इस उपवास में भगवान श्रीहरि की पूजा करनी चाहिये. संसार में पुत्रदा एकादशी उपवास के समान अन्य दूसरा व्रत नहीं है. इसके पुण्य से प्राणी तपस्वी, विद्वान एवं धनवान बनता है. इस एकादशी से सम्बन्धित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धापूर्वक श्रवण करो –

प्राचीनकाल में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके कोई सन्तान नहीं थी. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिन्ता थी कि उसके पश्चात् उसे तथा उसके पूर्वजों को कौन पिण्डदान देगा. उसके पितर भी व्यथित हो पिण्ड लेते थे कि सुकेतुमान के उपरान्त हमें कौन पिण्ड देगा. इधर राजा भी बन्धु-बान्धव, राज्य, हाथी, घोड़ा आदि से सन्तुष्ट नहीं था. उसका एकमात्र कारण पुत्रहीन होना था. बिना पुत्र के पितरों एवं देवताओं से उऋण नहीं हो सकते. इस प्रकार राजा रात-दिन इसी चिन्ता में घुला करता था. इस चिन्ता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हो गयी, किन्तु वह विचार करने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया. एक दिन इन्हीं विचारों में लीन वह अश्व पर सवार होकर वन को चल दिया.

अश्व पर सवार राजा वन, पक्षियों तथा वृक्षों को निहारने लगा. उसने वन में देखा कि मृग, बाघ, सिंह, बन्दर आदि विचरण कर रहे हैं. हाथी शिशुओं एवं हथिनियों के मध्य में विचर रहा है. उस वन में राजा ने देखा कि कहीं तो सियार कर्कश शब्द निकाल रहे हैं तथा कहीं मयूर अपने परिवार सहित नृत्य कर रहे हैं. वन के दृश्यों को देखकर राजा और अधिक व्यथित हो गया कि उसके पुत्र क्यों नहीं हैं? इसी सोच-विचार में मध्याह्न का समय हो गया. वह विचार करने लगा कि, ‘मैंने अनेक यज्ञ किये हैं तथा ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन कराया है, किन्तु इसके पश्चात् भी मुझे यह दुख क्यों मिल रहा है? अन्ततः इसका कारण क्या है? अपनी व्यथा किससे कहूँ? कौन मेरी व्यथा का समाधान कर सकता है?’

अपने विचारों में लीन राजा को प्यास लगी. वह जल की खोज में आगे बढ़ा. कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला. उस सरोवर में कमल के पुष्प खिले हुये थे. सारस, हंस, घड़ियाल आदि जल-क्रीड़ा में मग्न थे. सरोवर के चारों ओर ऋषियों के आश्रम बने हुये थे. अचानक राजा के दाहिने अङ्ग फड़कने लगे. इसे शुभ शकुन समझकर राजा मन में प्रसन्न होता हुआ अश्व से नीचे उतरा और सरोवर के तट पर विराजमान ऋषियों को प्रणाम करके उनके समक्ष बैठ गया.

ऋषिवर बोले – ‘हे राजन! हम तुमसे अति प्रसन्न हैं. तुम्हारी जो इच्छा है, हमसे कहो.’

राजा ने प्रश्न किया – ‘हे विप्रों! आप कौन हैं तथा किसलिये यहाँ वास कर रहे हैं?’

ऋषि बोले – ‘राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है. आज से पाँच दिवस उपरान्त माघ स्नान है तथा हम सभी इस सरोवर में स्नान करने आये हैं.’

ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा – ‘हे मुनियों! मेरा भी कोई पुत्र नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान दीजिये.’

ऋषि बोले – ‘हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका उपवास करें. भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा.’

राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया एवं द्वादशी को व्रत का पारण किया तथा ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया. भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिवस उपरान्त ही रानी ने गर्भ धारण किया तथा नौ माह के पश्चात् उसने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया. यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यन्त वीर, धनवान, यशस्वी एवं प्रजापालक बना.”

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