Home > धर्म > Premanand Ji Maharaj: नाम जप बोलकर करें या मन ही मन? प्रेमानंद जी महाराज से जानें सही विधि

Premanand Ji Maharaj: नाम जप बोलकर करें या मन ही मन? प्रेमानंद जी महाराज से जानें सही विधि

प्रेमानंद जी महाराज से जानें कैसे लें भगवान का नाम और कैसे करें नाम जप, भगवान का नाम मन में लेना शुभ होता है या बोलकर मंत्र जाप करना फलदायी होता है. जानें प्रेमानंद जी महाराज जी के अनमोल वचन.

By: Tavishi Kalra | Published: November 6, 2025 2:31:17 PM IST



Premanand Ji Maharaj:  प्रेमानंद गोविंद शरण, जिन्हें उनके हम प्रेमानंद महाराज के नाम से जानते हैं वह हिंदू तपस्वी और गुरु हैं. वह राधावल्लभ संप्रदाय से हैं. प्रेमानंद जी महाराज के विचारों को लोग बेहद पसंद करते हैं और उनके विचारों पर चलने की कोशिश भी करते हैं. जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल वचन.

भक्त के पूछे गए सवाल पर कि क्या बोलकर नाम जप करना चाहिए या मन में नाम जप करें, जानते हैं क्या है प्रेमानंद जी महाराज जी का कहना, यहां पढ़ें और सुने उनके विचार.

प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि इन दोनों की बातों में अंतर है. राधा-राधा नाम का जप करना और उनका ध्यान करने से मन को शांति का अनुभव होता है. जब हम बोलकर नाम जप करते हैं तो उसे वैखरी नाम जप कहते हैं जब हम मन में जप करते हैं तो उसे मानसिक जप कहते हैं. 

Margshirsha Month 2025: मार्गशीर्ष माह आज से शुरू, लड्डू गोपाल का पूजन करने से दूर होगी जीवन की सारी समस्याएं

एक यज्ञ करता है और एक जप करता है. तो “यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि” का अर्थ है “मैं सभी यज्ञों में जपयज्ञ हूँ” जपयज्ञ में वैखरी जैसे राधा-राधा का जप करना वाचिक दप है, यज्ञ से 10 गुना ज्यादा नाम जप बोलकर करने में फल है. वहीं वाचिक से 100 गुना बढ़कर के उपांश में है और उपांश से 1000 गुना बढ़कर के मानसिक में है.

लेकिन हमें इस गुना या फल में नहीं फंसना, मानसिक जप निरंतर सिद्ध पुरूषों का होता है. साधक को उपांश या वाचिक में ही अपने को रमाना चाहिए.

“राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार, तुलसी भीतर बाहेरहुँ, जौं चाहसि उजिआर:” का अर्थ है कि अगर आप अपने भीतर और बाहर उजाला (ज्ञान, शांति, और सकारात्मकता) चाहते हैं, तो अपनी जीभ रूपी देहरी पर ‘राम नाम’ रूपी मणि-दीपक धारण करें. यह दोहा तुलसीदास द्वारा लिखा गया है, जिसमें ‘राम नाम’ की महिमा और उसके महत्व को बताया गया है.

अगर हमारा मन नहीं लग रहा है तो हमें वाचिक पर समय देना चाहिए. फिर वाचिक से उपांश और उपांश से मानसिक जप की ओर जाना चाहिए. मानसिक सिद्धों का चलता है साधकों का नहीं. साधक को केवल वाचिक और उपांश में ही समय को लगाना चाहिए. 

श्री कृष्ण का प्रिय माह मार्गशीर्ष आज से शुरू, जानें इस माह में पड़ने वाले प्रमुख त्योहार

(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. इनखबर इस बात की पुष्टि नहीं करता है)

Advertisement