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Premanand Ji Maharaj: प्रेम और मोह में क्या अंतर हैं, जानें प्रेमानंद जी महाराज से

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल वचन लोगों को उनके जीवन के प्रेरित करते हैं. नाम जप, भगवान की सेवा, माता-पिता की सेवा करना ही परम सेवा है. जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज से आखिर प्रेम और मोह में क्या अंतर है.

By: Tavishi Kalra | Published: November 23, 2025 8:08:08 AM IST



Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज, एक हिंदू तपस्वी और गुरु हैं, जो राधावल्लभ संप्रदाय मो मानते हैं. प्रेमानंद जी महाराज अपनी भक्ति, सरल जीवन, और मधुर कथाओं के लिए लोगों में काफी प्रसिद्ध हैं. हर रोज लोग उनके कार्यक्रम में शामिल होते हैं जहां वह लोगों के सवालों के जवाब देते हैं.हजारों लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं. उनके प्रवचन, जो दिल को छू जाते हैं, ने उन्हें बच्चों और युवाओं सहित विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया है. प्रेमानंद जी महाराज नाम जप करने के लिए के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं और साफ मन से अपने काम को करें और सच्चा भाव रखें.

इस लेख के जरिए जानें की मोह और प्रेम में क्या अंतर होता है, क्यों लोग प्रेम और मोह को एक जैसा समझते हैं और उसमें कोई फर्क नहीं कर पाते हैं. प्रेम और मोह कैसे दोनों चीजें एक दूसरे से अलग हैं और क्या बातें इनको अलग बताती हैं. जानें प्रेमानंद जी महाराज की प्रेरक बातें और जानें इन मुश्किलों से कैसे बचें और किन बातों का भी ख्याल रखें.

मोह और प्रेम में क्या अंतर है, प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि मोह शरीर से होता है और प्रेम भगवान से होता है. प्रेम आत्मा और परमात्मा से होता है.

मोह मां, पिता, भाई, पत्नी रिश्ते नाते, प्रेम आत्मा से होता है. “प्रेम प्रतिक्षण वर्धमान है’ इसका अर्थ है कि सच्चा प्रेम हर पल बढ़ता रहता है,”मोह प्रतिक्षण नाश हो प्राप्त” होता है इसका अर्थ है मोह (आसक्ति) के बंधन हर क्षण समाप्त होते जा रहे हैं, क्योंकि सब कुछ नश्वर है और समय के साथ नष्ट होता जाता. 

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि प्रेम उज्जवल भासकर है और मोह अंधकार है.  प्रेम संसार से उद्धार करने वाला है और मोह संसार में बाँधने वाला है.

“मोह मूल बहु सूल प्रद, त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक, कृपा सिंधु भगवान॥” यह चौपाई रामचरितमानस से ली गई है जिसका अर्थ है मोह (अज्ञान) से उत्पन्न होने वाले, बहुत पीड़ा देने वाले और अज्ञानता रूपी अभिमान को त्याग कर, कृपा के समुद्र और रघुकुल के स्वामी भगवान श्री राम का भजन करो. संसारिक मोह के कारण भगवान से प्रेम नहीं हो पाता. भगवान से अनुराग इसीलिए नहीं हो पा रहा क्योंकि अपने शरीर और दूसरों के शरीर से हमें मोह हो गया है. मोह अज्ञान है. ज्ञान की वृद्धि होने पर मोह का नाश हो जाता है. विवेक और बुद्धि में वृद्धि केवल सत्संग से प्राप्त होती है. इसीलिए बिना भगवान की कृपा के सत्संग पूरा नहीं होता और बिना सत्संग के विवेक नहीं होता.

विवेक हुआ तो मोह रूपी भ्रम और अज्ञान का नाश हो जाता है. तब भगवान से प्रेम होता है. प्रेम आत्मा और परमात्मा से होता है और मोह शरीर से होता है.

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Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है. पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें. Inkhabar इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है.

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