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Shailputri Devi : नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से मिलती है लक्ष्यभेद करने की शक्ति, जानिए मां के जन्म की कथा

Navratri 2025: नवरात्रि में मां दुर्गा की शक्ति के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है. नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है शैल अर्थात पर्वत की पुत्री. मां भगवती यूं तो जगत जननी हैं किंतु समाज के कल्याण और लोगों के सामने विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने विभिन्न अवतार लिए. मां ने यह अवतार पर्वतराज हिमाचल की पुत्री बन कर लिया और शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया.

By: Pandit Shashishekhar Tripathi | Published: September 15, 2025 1:46:33 PM IST



नवरात्रि में मां दुर्गा की शक्ति के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है. नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है शैल अर्थात पर्वत की पुत्री. मां भगवती यूं तो जगत जननी हैं किंतु समाज के कल्याण और लोगों के सामने विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने विभिन्न अवतार लिए. मां ने यह अवतार पर्वतराज हिमाचल की पुत्री बन कर लिया और शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया. इस रूप में मां ने भक्तों को संदेश दिया कि लक्ष्य कितना भी कठिन हो किंतु तपस्या से उसे पाया जा सकता है.     

मां शैलपुत्री के जन्म की कथा

आदि शक्ति दुर्गा को समर्पित देवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ आयोजित किया जिसमें अपनी पुत्री सती के पति भगवान शंकर को छोड़ कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. आयोजन की तिथि पर सभी देवी-देवता अपने-अपने रथों पर सवार हो यज्ञ में शामिल होने के लिए चले कौतूहल वश देवी सती ने अपने पतिदेव से पूछ लिया कि सभी देवी-देवता किस समारोह में जा रहे हैं. भगवान शिव ने पूरी बात बताते हुए उन्हें जाने से रोका कि बिना निमंत्रण जाना ठीक नहीं होगा लेकिन उत्साहित देवी सती शामिल होने चली गईं. वहां पर शिव जी का तिरस्कार और अपमान देख वे क्रोधित हो गयीं और यज्ञ का विध्वंस कर उसमें कूद कर अपनी आहुति दे दी. जानकारी मिलते ही महादेव को क्रोध आ गया और उन्होंने दक्ष का वध कर महासमाधि ले ली. इसके बाद देवी सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और तपस्या कर महादेव को पति के रूप प्राप्त किया.

वाहन वृषभ के कारण शैलपुत्री बनीं वृषारूढ़ा

नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना का विधान है. मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है जिसके कारण उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. कुछ ग्रंथों में उनका नाम हेमवती भी है. मां के बाएं हाथ में कमल का फूल और दाहिने हाथ में त्रिशूल है. 

पूजन से दूर होती हैं मार्ग की बाधाएं

मां शैलपुत्री का महत्व और शक्ति अनंत है. कठिन लक्ष्य साधने वालों को इनकी पूजा करने से मार्ग की बाधाएं दूर होती हैं और मां के आशीर्वाद से वे लक्ष्य का प्राप्त कर लेते हैं. विधि विधान से उनकी पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होने के साथ ही शुभ फल की प्राप्ति होती है. 

खीर रबड़ी का भोग माना जाता है शुभ

मां शैलपुत्री को खीर और रबड़ी का भोग लगाना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इन खाद्य पदार्थों का भोग लगाने से घर में सुख शांति का वास होता है. पूजन करने के बाद परिवार और आसपास के लोगों में भोग प्रसाद बांटना चाहिए. 

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