Navratri 2025: नवरात्र के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप की मां चंद्रघंटा के रूप में पूजा की जाती है. मां के तीसरे स्वरूप में मस्तक पर चंद्रमा के आकार का घंटा उपस्थित है जिसके कारण उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. यह चंद्रघंटा सोने की तरह चमकता है. इस स्वरूप में मां शेर पर सवार हैं जिनके 10 हाथ हैं और हर हाथ में गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र और अन्य अस्त्र-शस्त्र हैं. अग्नि जैसे वर्ण वाली, ज्ञान से जगमगाने वाली दीप्तिमान देवी चंद्रघंटा युद्ध के लिए तैयार हैं.
मां के अवतार की कथा
असुरों के बढ़ते आतंक को समाप्त करने के लिए देवी-देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से प्रार्थना की तो तीनों के क्रोध से उत्पन्न हुई ऊर्जा से हुआ देवी चंद्रघंटा का जन्म. उन्हें भगवान शंकर ने त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज और तलवार तथा सिंह प्रदान किया. अन्य देवताओं से भी उन्हें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए. दरअसल महिषासुर नाम के राक्षस ने पहले भगवान का कठोर तप कर कई आशीर्वाद प्राप्त कर लिए फिर संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी बनने की योजना बनायी. उसने देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया तो इंद्र सहित सभी देवता त्रिदेवों के सामने पहुंचे और अपनी व्यथा बतायी. तीनों को बहुत क्रोध आया तो उसकी ऊर्जा से वहीं पर मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति हुई. उन्होंने महिषासुर का वध करके देवताओं की रक्षा की.
मिलती है शक्ति और निर्भयता
मां चंद्रघंटा दुष्टों का नाश कर अपने भक्तों को शक्ति, निर्भयता और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. उनकी पूजा करने से शरीर के सभी रोग, दुख और कष्ट दूर होते हैं. मान्यता है कि मां की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं. मां का यह स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है. इनका उपासक शेर की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है. इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेत बाधा से रक्षा करती है.
इनकी आराधना से भक्त में वीरता व निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया की कांति और गुणों में वृद्धि होती है. स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है. विद्यार्थियों के लिए मां साक्षात विद्या प्रदान करती है. मां भगवती के इस स्वरूप की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिए और पूजन के उपरांत वह दूध ब्राह्मण को दक्षिणा के साथ देना चाहिए.