Dussehra 2025: आज देशभर में धूमधाम से दशहरा मनाया जा रहा है. ये त्योहार अच्छाई पर बुराई की जीत,अंधकार पर प्रकाश की विजय, और सच्चाई पर अन्याय की जीत का सेलिब्रेशन है. यह त्योहार सबसे ज्यादा रावण के पुतले जलाने और भगवान राम की विजय की कहानी सुनाने के लिए जाना जाता है. लेकिन इसके साथ कुछ खास परंपराएं भी जुड़ी हैं. इनमें से एक है दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना. माना जाता है कि दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी देखने से बहुत सारी खुशियां और भगवान का आशीर्वाद मिलता हैं. यह परंपरा भारत के कई इलाकों में सालों से चली आ रही है. तो चलिए जानते हैं कि इसके पीछे की कहानी क्या है.
नीलकंठ पक्षी के पीछे का रहस्य
नीलकंठ पक्षी का नाम भगवान शिव के नाम पर पड़ा है जिन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है मतलब ‘नीले गले वाला’. हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार जब समुंद्र मंथन हुआ था तो समुद्र से एक जहरीला विष “हलाहल” निकला जो सृष्टि को नष्ट करने का खतरा बन गया था. तब भगवान शिव ने वह विष को पी लिया जिससे उनका गला नीला पड़ गया. अपने इस त्याग से उन्होंने जीवन को बचाया और ब्रह्मांड में संतुलन बनाए रखा. नीलकंठ पक्षी अपने शानदार नीले गले और रंग-बिरंगे पंखों के साथ भगवान शिव की दिव्य रूप की जीवित प्रतिमा माना जाता है.
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार जब भगवान राम ने रावण का वध किया तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था. इस दौरान भगवान शिव ने नीलकंठ पक्षी का रूप धारण किया. जैसे ही भगवान राम ने इस पक्षी को देखा उनके सारे पाप तुरंत ही धुल गए. इसलिए दशहरे पर इस पक्षी के दर्शन अत्यंत शुभ माने जाते हैं.
वहीं ये भी माना जाता है कि नीलकंठ पक्षी और दशहरा का संबंध भगवान राम और रावण के युद्ध की कहानियों में मिलता है. मान्यता है कि लंका के युद्ध के लिए जाने से पहले भगवान राम ने एक नीलकंठ पक्षी को देखा था. इसे जीत की गारंटी माना गया. तब से नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ माना जाता है और यह विश्वास रखा जाता है कि जब हम सही रास्ते पर चलते हैं तो ब्रह्मांड हमारा साथ देता है.
नवीनीकरण और सकारात्मकता का प्रतीक
दशहरा केवल अंत का त्योहार नहीं है बल्कि एक नई शुरुआत का भी प्रतीक है. यह दिवाली का मार्ग प्रशस्त करता है जो प्रकाश का त्योहार है और हिंदू संस्कृति में सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में से एक है. इस नजरिए से नीलकंठ पक्षी को पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है. इसके नीले पंख आकाश, विस्तार और अनंत संभावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.
कई लोगों के लिए यह पक्षी नकारात्मकता और निराशा को पीछे छोड़कर आशा और धैर्य के साथ नई शुरुआत करने की याद दिलाता है. यह दशहरा के उस संदेश से मेल खाता है जिसमें हम अपने अंदर की बुराइयों जैसे अहंकार, क्रोध और लालच को खत्म करके नई ऊर्जा और उम्मीद के साथ आगे बढ़ते हैं.
एक पुरानी परंपरा जारी
उत्तर और पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों में लोग दशहरा के दिन सुबह जल्दी उठकर नीलकंठ पक्षी को देखने की परंपरा को आज भी मानते हैं. कुछ लोग इसे देखते हुए हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं, तो कुछ इसे अपने परिवार और पड़ोसियों को बताते हैं और खुशी मनाते हैं. हालांकि यह हर किसी के लिए संभव नहीं है लेकिन इसकी तस्वीर देखने मात्र से ही आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है.
डिस्क्लेमर- (इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं. विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें.)