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Kaal Bhairav Jayanti 2025: क्यों कहलाते हैं काल भैरव काशी के कोतवाल? दिलचस्प कहानी

Kaal Bhairav Jayanti 2025: भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले बाबा काल भैरव का काशी से गहरा संबंध है. उन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है,आइए जानतें हैं इसके बारे में विस्तार से.

By: Shivashakti Narayan Singh | Last Updated: November 11, 2025 2:41:52 PM IST



Kaal Bhairav Jayanti 2025: भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले बाबा काल भैरव का काशी से गहरा संबंध है. उन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है और स्वयं भगवान शिव ने उनकी नियुक्ति की थी. ऐसी मान्यता है कि काशी में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को वहां निवास करने के लिए बाबा काल भैरव की अनुमति लेनी होती है.

कब है भैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Jayanti 2025 Date)

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, 12 नवंबर को काशी के भैरव मंदिरों में उनकी जयंती मनाई जाएगी. इस अवसर के लिए भैरव मंदिरों में तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं. काशी के न्यायाधीश लाटभैरव, कोतवाल कालभैरव, बटुक भैरव, रूरूभैरव, असभैरव, दंडपाणि भैरव, यक्षभैरव, उन्मत्तभैरव, भीषणभैरव, संहारभैरव, कोदमदेश्वरभैरव सहित अन्य मंदिरों में विविध अनुष्ठान किये जायेंगे. पं. के अनुसार विकास शास्त्री के अनुसार इस बार भैरव अष्टमी की तिथि पर शुक्ल और ब्रह्म योग एक साथ बनेंगे. 12 नवंबर को सूर्योदय से शुक्ल योग प्रारंभ होगा और सुबह 8:02 बजे तक रहेगा. उसके बाद आधी रात के बाद तक ब्रह्म योग रहेगा. मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी तिथि 11 नवंबर को रात 11:08 बजे से शुरू होगी. इसका समापन 12 नवंबर को रात 10:58 बजे होगा.

काशी के कोतहवाल की कहानी (kashi ke kotwal)

भगवान विश्वनाथ को काशी का राजा कहा जाता हैं और काल भैरव को इस प्राचीन नगरी का कोतवाल. इसी कारण उन्हें काशी का कोतवाल(kashi ke kotwal) भी कहा जाता है. उनके दर्शन के बिना बाबा विश्वनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है. बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहे जाने के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है. शिव पुराण के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव में से कौन श्रेष्ठ है, इस पर विवाद छिड़ गया. ब्रह्मा ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए. तब भगवान शिव ने अपने उग्र रूप से काल भैरव को जन्म दिया. भगवान के अपमान का बदला लेने के लिए, कर भैरव ने अपने नाखूनों से ब्रह्मा का सिर काट दिया, जिससे भगवान शिव का अपमान हुआ था. इससे ब्रह्महत्या का पाप लगा.

ब्रह्महत्या के पाप का प्रायश्चित

ब्रह्महत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए, भगवान शिव ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने को कहा. उन्हें बताया गया कि जैसे ही ब्रह्मा का कटा हुआ सिर उनके हाथ से गिरेगा, वे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाएंगे. अंततः, काल भैरव की यात्रा काशी में समाप्त हुई, जहां वे स्थापित हुए और नगर के कोतवाल(kashi ke kotwal) बने.

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