Home > धर्म > Ganadhipa Sankasthi Chaturthi 2025: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पढ़ें ये व्रत कथा, जीवन से दूर होंगे सारे कष्ट

Ganadhipa Sankasthi Chaturthi 2025: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पढ़ें ये व्रत कथा, जीवन से दूर होंगे सारे कष्ट

Ganadhipa Sankasthi Chaturthi 2025: गणाधिप संकष्टि चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के समय कथा का पाठ जरूर करें. बिना कथा का पाठ किए पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता. धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत कथा का पाठ करने से जीवन में खुशहाली आती है.

By: Shivi Bajpai | Published: November 8, 2025 10:08:40 AM IST



Margashirsha Ganadhipa Sankashti Chaturthi Vrat Katha: हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि बहुत पावन मानी जाती है. चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित की गई है. तो आइए जानते हैं कि आज के दिन 08 नवंबर 2025, शनिवार के दिन संकष्टी चतुर्थी पर कथा पढ़ने से आपको धन-धान्य की कमी नहीं होती है.

गणाधिप या मार्गशीर्ष संकष्टि चतुर्थी का व्रत और इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है. गणाधिप संकष्टि चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के समय कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए. बिना इस कथा का पाठ करें आपको व्रत का पूरा फल नहीं प्राप्त होता है. 

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Ganadhipa Sankasthi Chaturthi Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे. उनको जंगल में शिकार करना बहुत पसंद था. एक बार शिकार के दौरान उनके हाथों श्रवण कुमार नाम के ब्राह्मण की मृत्यु हो गई. उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा को श्राप दे दिया. श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप देते हुए कहा कि जैसे उनकी मृत्यु पुत्रशोक में हो रही है, वैसे ही उनके भी (राजा दशरथ के) पुत्रशोक में प्राण जाएंगे. इससे राजा को बहुत चिंता हुई. उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया. फलस्वरूप भगवान राम ने अवतार लिया. कुछ समय बाद उनका माता सीता से विवाह हो गया. इसके बाद कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और भगवान राम के लिए 14 वर्षों का वनवास मांग लिया. राजा दशरथ ने बड़े दुखी मन से भगवान राम को वनवास भेजा. पिता की आज्ञा लेकर भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण तीनों वनवास के लिए चल दिए, जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षस और राक्षसियों का वध किया. इससे क्रोधित होकर रावण ने सीता जी का अपहरण कर लिया.

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सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी त्याग दिया और उनको खोजते-खोजते ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे, जहां उनकी मित्रता सुग्रीव हुई. इसके बाद सीता जी की खोज में हनुमान जी और वानर तत्पर हुए. सीता जी को ढूंढते-ढूंढते वानरों की नजर गिद्धराज संपाती पर पड़ी. इसके बाद संपाती के पूछने पर जामवंत ने उनको सारी रामव्यथा बताई. साथ ही उनको उनके भाई जटायू की मौत की खबर भी दी गई. इसके बाद संपाती ने बताया कि लंकापति रावण माता सीता का हरण करके उनको लंका ले गया है. लंका समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है. वहां अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हुईं हैं. संपाती ने बताया कि मैं सीता जी को देख सकता हूं. सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली हैं. सिर्फ हनुमान जी में ही समुद्र लांघ जाने की क्षमता है. संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? तब संपाती हनुमान जी से कहा कि आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए. उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर जाएंगे. संपाती के कहने के बाद हनुमान जी ने संकट चतुर्थी का व्रत किया. इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को लांघ गए.

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