Dussehra 2025 Ka Mehtav: दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख पर्व है. यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है. रावण पर भगवान श्रीराम की जीत और महिषासुर पर मां दुर्गा की विजय, दोनों ही कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं. इस दिन शस्त्र पूजन और शमी वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. शमी का वृक्ष न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे धन, सौभाग्य और विजय का प्रतीक भी माना जाता है.
शमी वृक्ष का महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों में शमी वृक्ष को पवित्र और शक्तिशाली बताया गया है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव अज्ञातवास में थे, तब उन्होंने अपने शस्त्र शमी वृक्ष में छिपाए थे. एक वर्ष बाद जब वे शस्त्र निकालने गए तो वे पहले से भी अधिक तेजस्वी हो गए थे. तभी से शमी की पूजा और शस्त्र पूजन की परंपरा चली आ रही है. यह विश्वास है कि शमी वृक्ष में धन और विजय का आशीर्वाद निहित होता है.
दशहरे पर शमी पूजा क्यों की जाती है?
दशहरे के दिन शमी की पूजा करने का रहस्य विजय और सौभाग्य से जुड़ा है. इस दिन शमी वृक्ष के नीचे दीप जलाकर और उसकी पत्तियाँ भगवान को अर्पित करके पूजा की जाती है. मान्यता है कि शमी वृक्ष अग्नि देव का प्रिय है, और इसकी पूजा से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. इसके अलावा, लोग शमी के पत्ते एक-दूसरे को स्वर्ण पत्र (सोने के समान) मानकर देते हैं, जिससे घर में धन, सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है.
धन और सौभाग्य से संबंध
शमी वृक्ष को धन का प्रतीक माना गया है. दशहरे पर शमी की पूजा करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक उन्नति के मार्ग खुलते हैं. व्यापारी वर्ग विशेष रूप से इस दिन शमी के पत्तों को तिजोरी या बही-खाते में रखते हैं, ताकि वर्ष भर धन और लाभ प्राप्त होता रहे.
Shardiya Navratri 2025: नवरात्रि के बाद बोए हुए जौ का क्या करें? जानिए खास उपाय, नहीं होगी कभी धन की कमी
विजय का प्रतीक
शमी वृक्ष की पूजा का सबसे बड़ा संदेश है विजय प्राप्त करना. जैसे पांडवों को शमी वृक्ष से अपने शस्त्रों के जरिए विजय मिली, वैसे ही भक्त विश्वास करते हैं कि इस दिन की गई पूजा जीवन की कठिनाइयों और शत्रुओं पर विजय दिलाती है.