आज छठ पूजा सिर्फ़ बिहार या पूर्वी भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब ये एक ग्लोबल फेस्टिवल बन चुकी है. भारत से लेकर दुबई, लंदन और न्यूयॉर्क तक हर जगह घाटों पर सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा उसी श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई जाती है. चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व पवित्रता, संयम और आस्था का प्रतीक माना जाता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है जिस छठ पूजा को आज पूरी दुनिया में इतनी धूम-धाम से मनाया जाता है, उसकी शुरुआत आखिर हुई कहाँ से थी? और सबसे पहले इस व्रत को किसने रखा था?
आइए जानें कि सबसे पहले छठ पूजा किसने की थी, इसका महाभारत से क्या संबंध है और इससे जुड़ी परंपराएं और मान्यताएं क्या हैं.
छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई?(How did Chhath Puja begin?)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. माता कुंती ने सबसे पहले इस व्रत का पालन किया था. ऐसा माना जाता है कि उन्होंने पांडवों की विजय और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव की आराधना की थी. कुंती को सूर्य देव से कर्ण नामक एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई. कर्ण के जीवन में सूर्य की दिव्य ऊर्जा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया. इसी कारण माता कुंती ने सूर्य देव की पूजा को विशेष महत्व दिया और इस व्रत की शुरुआत की.
छठी मैया कौन हैं?(Who is Chhathi Maiya?)
धार्मिक ग्रंथों में छठी मैया को सूर्य देव की बहन बताया गया है. इन्हें षष्ठी देवी या कात्यायनी देवी के नाम से भी जाना जाता है. छठी मैया को संतान की रक्षक देवी माना जाता है. इनकी पूजा करने से परिवार में सुख, समृद्धि और संतान प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि छठी मैया के आशीर्वाद से जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं.
छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व
छठ पूजा संयम, पवित्रता और भक्ति का एक महापर्व है. इस पर्व में, व्रती सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करके अपने जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का आह्वान करते हैं. सूर्य की पूजा स्वास्थ्य और स्फूर्ति का प्रतीक है. छठी मैया की पूजा से मातृत्व और सुरक्षा की भावना जागृत होती है. यह पर्व प्रकृति, जल, वायु और सूर्य के प्रति सम्मान व्यक्त करने का भी एक अवसर है.
आपको बताते चलें कि इस वर्ष चार दिवसीय छठ पर्व 24 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है. यह चार दिवसीय पर्व नहाय-खाय से शुरू होकर सुबह अर्घ्य (जल अर्पण) के साथ संपन्न होता है. नहाय-खाय के दिन व्रती महिलाएं स्नान करके कद्दू और चावल का सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं. अगले दिन खरना पूजा की जाती है. इस दौरान व्रती महिलाएं शाम को नए मिट्टी के चूल्हे पर खीर और पूरी बनाती हैं. फिर इन प्रसादों को भोग लगाकर परिवार के सदस्यों में बांटा जाता है. छठ पूजा का तीसरा दिन बेहद खास होता है. इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. अगली सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ ही पर्व का समापन होता है.
Chhath puja 2025: बिहार, यूपी और झारखंड ही नहीं, इन देशों में भी मनाया जाता है छठ पूजा