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Chhath Puja 2025: पढ़ें छठ पूजा की कहानी, जानें कैसे हुई इस महापर्व की शुरुआत, क्यों होती है सूर्य देव की पूजा

Chhath Puja Story: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से छठ पूजा के त्योहार की शुरुआत हो जाती है और इसका समापन सप्तमी तिथि में किया जाता है. 4 दिनों तक चलने वाला यह महापर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. छठ व्रत मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें से एक सीता माता से दूसरी द्रौपदी से जुड़ी है. चलिए पढ़ते हैं यहां छठ पूजा की कहानी

Published by chhaya sharma

Chhath Puja Ki Kahani: हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा के त्योहार की शुरुआत होता है. पंचांग के अनुसार आज 25 अक्टूबर शनिवार के दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है, ऐसे में आज से छठ पूजा के त्योहार की शुरुआत  हो चुकी है और इसका समापन 28 अक्टूबर को होगा. छठ पूजा का व्रत संतान की लंबी आयु, परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है और महिलाए इसमें 36 घंटों का निर्जला व्रत रखती है. छठ पूजा में छठी मैय्या के साथ-साथ सूर्य देव की पूजा की भी की जाती है. छठ व्रत मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें से एक सीता माता से जुड़ी है. चलिए पढ़ते हैं यहां छठ पूजा की कहानी

छठ पूजा की कथा (Chhath Puja Ki Katha)

छठ पूजा के दिन छठी मैया और सूर्य देव की पूजा को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें से एक सीता माता से दूसरी द्रौपदी से जुड़ी है. आइए जानते हैं छठ पूजा की कहानी…

महाभारत से जुड़ी है छठ की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा के महा पर्व की शुरुआत महाभारत के समय में हुई थी. सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा की थी. वो रोजाना घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था और अपने पिता  सूर्यदेव के आशीर्वाद से वह महान योद्धा बना.

द्रौपदी से भी बताया गया है छठ के त्योहार का संबंध

इसके अलावा कुछ कथाओं में द्रौपदी से भी छठ के त्योहार को जोड़ा गया है. कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब माता द्रौपदी ने छठ व्रत किया था.  वहीं व्रत के पुण्य फलों से पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल था. इसलिए छठ का व्रत करना सुख-समृद्धिदायक माना जाता है.

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मा सीता और प्रभु श्रीराम से जुड़ी है छठ की कहानी

वहीं हिंदू धर्म में एक और पौराणिक कथा प्रचलित है, जो प्रभु श्रीराम से जुड़ी है. कहा जाता है जब श्रीराम ने रावण का वध किय था, तब कार्तिक शुक्ल षष्ठी को माता सीता और भगवान श्रीराम ने उपवास किया था और सूर्यदेव की पूजा की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय दोबारा पूजा-आराधना से सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था.

क्यों होती है छठ में सूर्य देव की पूजा 

छठ पूजा के दौरान छठी मैयाके साथ सूर्यदेव की पूजा करने का बड़ा महत्व माना जाता है. छठी मैया सूर्य देव की बहन है. इसलिए छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए छठ पूजा के दौरान सूर्य देव की भी पूजा की जाती है. इस पर्व में घर की साफ-सफाई का बेहद ध्यान रखा जाता है. चारों दिनों तक सात्विक भोजन किया जाता है.  धठ पूजा के पहले दिन दिन खरना होता है. दूसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सुबह उगते हुए सूर्य को जल देते हैं. मान्यता है कि छठ का व्रत करने से घर में खुशहाली, धन, सुख-समृद्धि बनी रहती है. संतान सुख  और संतान की लंबी आयु के लिए भी यह व्रत किया जाता है.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है. पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें. Inkhabar इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है.

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